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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। १५-खाचरोदचतुर्मासीतः परं कूकसीसंघोपदेशःवर्षेऽस्मिन् खाचरोदश्री-संघप्रार्थनया मुदा । तस्थौ पूज्यश्चतुर्मास्यां, श्रीसंघोपचिकीरसौ ॥१३९।। प्राभूवन धर्मकार्याण्यु-पदेशादेव सद्गुरोः। जीर्णानि धर्मधामानि, चोहरेयुरनेकशः ॥१४० ।। श्रावका धर्मशिक्षां च, श्रद्धारत्नमुपागमन् । गुरूणां वन्दनायाऽऽगुः, श्रावकास्तु सहस्रशः।।१४१|| सप्तसहस्रं रूप्याणां, श्रीसंघेन व्ययीकृतम् । परा धर्मोन्नतिस्तेन, चक्रेऽन्तेऽष्टाह्निकोत्सवम् ।।१४२।। विहरश्च प्रतिग्रामं, कूकसीपत्तनेऽप्यगात् । आसोजी-देविचन्द्रादि-श्राद्धाः प्रश्नोत्तरैर्गुरोः ॥१४३।। क्रियोद्धार करने के बाद १९२५की सालमें श्रीसंघोपकारी श्रीराजेन्द्रमूरिजी खाचरोद श्रीसंघ की प्रार्थनासे चौमासे खाचरोद रहे। गुरुदेवके सदुपदेशसे यहाँ अनेकानेक धर्मकार्य हुए, जीर्ण मंदिर, धर्मशालादिकों के उद्धार भी हुए । जैन नामधारी बहुतसे श्रावकों को धर्मशिक्षा व सम्यक्त्व रूपी रत्न प्राप्त हुए और आपश्री को वन्दन करनेके लिये तो हजारों भावुक आए । फिर चौमासे के अन्तमें श्रीसंघकी तर्फसे अट्ठाइ महोत्सव किया गया, उसमें बहुत ही धमकी उन्नति हुई, इस चौमासेमें संघके सात हजार रुपये खर्च हुए।
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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