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________________ ३६ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी । साथ अपनी श्री पूज्यसंबन्धी छड़ी, चामरादि कुल चीजोंकी ताम्रपत्र पर नामावली लिखकर प्राचीन श्रीसुपार्श्वनाथजी के मंदिर में लगा और चीजें आदिनाथ के मंदिर में चढ़ाकर संवत् १९२५ आषाढ़ वदि १० शनिवारके रोज महोत्सवके साथ शुभ समय में क्रियोद्धार किया ।। १२९ - १३२ ॥ सहस्रशस्तदाऽऽसीद्वै, श्रीसंघानामुपस्थितम् । अबो भूवीजयारावः, श्रीसंघमुखसम्भवः ॥ १३३ ॥ त्यक्त्वा सर्वभवोपाधिं, भूत्वा सत्यमहाव्रती । भव्यानामुपकाराय, स्वशिष्यैर्विचचार सः ॥ १३४ ॥ साम्भोगिकं गुरुं कञ्चिद्, विनासावकरोत्कथम् ? | क्रियोद्धारं स्वहस्तेन, जानन्नपि समाssगमान् ॥ १३५ ॥ स्वगच्छे गुरुसप्ताष्ट-पारम्पर्य उपेयुषि । कौशील्यं नियतं सद्भि- गुरुरन्यो विधीयते ॥ १३६ ॥ १ - वह इस प्रकार है--" जावरानयरे श्रीजिनाय नमः । संवत् १९२५ आषाढ़ ददि १० भ० श्रीविजयराजेन्द्रसूरिभिः क्रियोद्धारः कृतः, तैः श्रीआदीश्वर प्रासादे राता बिबादिवस्तूनि भगवदर्थेऽर्पितानि । यथा - छड़ी १, चामर २, सूरजमुखी ३, छत्र ४, सुखासन ५, ए चीजां भेट कीनी श्री ऋषभदेवजीरे | ए वस्तु माहेसुं कोई देवे देवावे, भांगे तेहने तथा पत्राने उखेले तेने श्रीचौवीसीनी आण छे, हमीरविजयना द० छे श्रीहजूरआदेशात् शुभम् । ""
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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