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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। अष्टाहिक महोत्सव भी किया ॥५९३॥ और संघके किये हुए निश्चयानुसार मोहनखेड़ा तीर्थके अन्दर ही अग्निसंस्कारकी जगह पर कोमल चिकने आरसोपल जातिके पाषाणोंसे गुरुसमाधि मंदिर बनवाया ॥ ५९४ ॥ गुरुश्री के इस सुन्दर ध्यानमंदिर में अत्यन्त सहर्ष कुंकुमपत्रिका द्वारा इकट्ठे हुए पर ग्रामके श्रीसंघ सहित यहाँ के श्रीसंघने आठ दिनके महोत्सव पूर्वक उत्तम अञ्जनशलाका प्रतिष्ठा के साथ दिवंगत जैनाचार्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की सजन लोगोंके चित्तको आकर्षित करने वाली महोत्तम मनोहर मूर्तिको स्थापन की ॥५९५॥ ५९६॥ यहॉपर हरसाल पौष सुदि सप्तमी और चैत्र-कार्तिक पूर्णिमाके रोज चारों ओरसे गुरुदेवके दर्शनकी चाहसे हजारों यात्री लोग आते हैं ।। ५९७ ।। ४९--फलसिद्धया गुरुबिम्बार्चा तदने तद्गुणोत्कीर्तनं चकार्यसिद्धिपणं कृत्वा, महत्या श्रद्धया समे। सूत्सवं भो ! वितन्वानैः, श्राद्धैश्वान्यजनैरपि ॥५९८॥ दसोरे खाचरोदे च, कूकस्यां जावरापुरे । आहोरादिपुरेष्वेवं, पूज्यन्ते गुरुमूर्तयः ॥५९९ ॥
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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