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________________ श्री राजेन्द्रगुणमञ्जरी । रण किया || ३५५ || गुरुमहाराजका इन भूपने राज्यमें बहुत ही सन्मान कराया । और ये पूजापाठ में अति भक्तिसे गुरुकी तस्वीर भी रखते हैं ।। ३५६ ।। पहिले भी इन गुरुभक्त अति विचक्षण नृपने यहाँ १९५३ की सालमें अञ्जनशलाका युक्त प्रतिष्ठामें धर्मबुद्धिसे सब प्रकार की सहायता दी थी || ३५७ || ये नृप उनकी वचनसिद्धिको तथा गुरुबुद्धिसे आज दिन तक भी उनका स्मरण कर रहे हैं । इस कलियुगमें प्राणियों को इस प्रकारके सद्गुरूका योग मिलना अति दुर्लभ है ।। ३५८ ॥ शहर जावराके अन्दर पारिखगोत्रीय-छोटमलजीके तर्फ से बनवाया गया श्री ऋषभदेवजीके मंदिरकी प्रतिष्ठा आपने की ।। ३५९ ।। श्रीतालनपुरे तीर्थे, गोडीपार्श्वजिनस्य च । पूर्णबनिवैकाब्दे, प्रतिष्ठा कारिताऽमुना ॥ ३६० ॥ वागग्रामेऽथ पूज्योऽयं, श्रीविमलजिनालये । तदञ्जनप्रतिष्ठां वै, विदधे हर्षनिर्भरः ततो राजगढेऽप्यष्टा-पदख्यातजिनालये । महामहेन सानन्दं, यः साञ्जनप्रतिष्ठया ॥ ३३२ ॥ रूपाध्यक्षचुनीलाल-कारितेऽस्थापयज्जिनान् । ।। ३६१ ।। श्रीधारा - झाबुवाधीशै - जण्टाश्वाप्यागुरत्र वै ॥ ३६३ ॥
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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