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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। के समय जो इस भाँति वरतता है वही पुण्यशाली विवेकात्मा है । संघमें वस्त्राच्छादित सेजगाड़ियाँ १०१, रक्षाके लिये शीघ्रगामी घोड़ोंके ऊपर बैठे हुए सवार तथा सिपाही ३००, शकट ४०० और सेंकड़ों भारवाही ऊंट थे ।। २२४-२२८ ॥ बहवः किंकराश्चाऽऽसन् , सर्वकार्यविचक्षणाः सेवकनरगन्धर्व-महात्मन्यतिकादयः । ॥ २२९ ।। व्याख्यानं च प्रतिस्थाने, संघभोज्यं प्रभावना । सानन्देनाभवन्नित्यं, तत्तत्काले समागते ॥ २३० ॥ संघश्रेष्ठो ददौ द्रव्यं, सप्तक्षेत्र्यां प्रतिस्थले। संघः शंखेश्वरं तीर्थं, ववन्दे हर्षनिर्भरः ॥ २३१ ॥ जगामाहमदावाद-वाटिकायामतःपरम् । तत्रत्यः प्रमुदा संघः, संघमेनं व्यशिश्रियत् ॥२३२॥ चातुर्मासस्य विज्ञप्ती, जातायां बहुधाऽऽग्रहैः । सूत्तरं संघदाक्षिण्यान् , मिष्टवाक्यैर्गुरुादात्॥२३३।। सभी कार्यों में हुशियार बहुतसे नौकर और सेवक, भोजक, महात्मा, यति आदि अनेक लोग संघमें थे ॥२२९॥ सानन्द हरएक मुकाम पर व्याख्यानका श्रवण, संघको भोजन देना, प्रभावना वाँटना, इत्यादि अपने अपने समय आने पर कुल कार्य हमेशा होते थे ।।२३०।। संघपति स्थान २ पर सात क्षेत्रोंमें धन देता हुआ सहर्ष संघ सहित उसने शंखेश्वर तीर्थको वन्दन
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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