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________________ ( ७५ ) उत्तिष्ठ क्षणमेकमुद्वह सखे दारिद्र्यभारं मम श्रांतस्तावदहं चिरान्मरणजं सेवे त्वदीयं सुखम् । इत्युक्तं धनवर्जितस्य वचनं श्रुत्वा श्मशाने शवो दारिद्यान्मरणं वरं वरमिति ज्ञात्वैव तूष्णीं स्थितः भावार्थ — कोई निर्धन दरिद्र, एक मुडदाने कहे छे के - हे मित्र ! एक क्षणवार उठ अने आ मारो दारिनो भार उचकी ले. कारण के हुं घणा वखतथी थाकी गयो छु, तेथी तारा मरणना सुखनो हुं अनुभव लउं ए रीते धनहीननुं वचन सांभळीने श्मशानमां पडेल शब ( मुडदुं ) बोल्युं के - ' अहो ! तारा दारिद्र्यथी मारे मरण हजार दरज्जे सारुं छे' एम सांभळीने ते निर्धन गुपचुप थई गयो. ३२ उत्तमा आत्मना ख्याताः पितुः ख्याताश्च मध्यमाः। अधमा मातुलात्ख्याताः श्वशुराच्चाधमाधमाः ३३ भावार्थ — उत्तम जनो पोताना बळथी (गुणोथी) प्रख्यात थाय छे, मध्यम जनो पिताना नामे प्रख्यात थाय छे, अधम जनो मामाना नामथी प्रख्यात थाय छे अने अधमाधम जनो ससराना नामे प्रसिद्धिने पामे छे. ३३
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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