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________________ (६३) भावार्थ-अहीं पण कांइ नथी, अने त्यां पण कांड नथी, ज्यां जाउं, त्यां कांइ नथी. विचार करी जोतां जगत पण कांइ नथी अने पोताना आत्मबोध विना बीजुं कांइ अधिक नथी. १३ ____ इयमुन्नतसत्त्वशालिनां महतां कापि कठोरचित्तता । उपकृत्य भवंति दूरतः परतः प्रत्युपकारशंकया ॥१४॥ भावार्थ-अहो! उन्नत अने सत्त्ववंत महापुरुषोना मननी आ पण एक कठोरता छे. कारण के तेओ परोपकार करीने अन्यपासेथी प्रत्युपकारनी शंकाथी तरत दूरज थइ जाय छेः १४ ___ इदं हि माहात्म्यविशेषसूचकं वदंति चिह्न महतां मनीषिणः । मनो यदेषां सुखदुःखसंभवे प्रयाति नो हर्षविषादवश्यताम् ॥१५॥ - भावार्थ-सुज्ञ जनो कहे छे के-महापुरुषोना विशेष माहात्म्यने सूचवनार आ एक मुख्य चिह्न छे, ते ए के तेमने ज्यारे सुख के दुःख उपस्थित थाय, त्यारे तेओ हर्ष के विषादने वश थता नथी. १५
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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