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________________ (५४) भावार्थ-शातात थयेला वानरा जेम अग्मिनी आशाथी चणोठीओनो आश्रय ले, तेम अज्ञ जनो सुखनी वांछाथी स्त्रीओनो आदर करे छे. २६ आस्तां परपुमान्यूना पित्रा भ्रात्रा सुतेन वा । एकाकिना सहैकांते न स्थातव्यं कुलस्त्रिया२७ भावार्थ--युवान पर पुरुष तोशु, पण पोताना पिता, माइ के पुत्र साथे पण कुलीन स्त्रीए एकांतमां बेसवं नहि. २७ आरक्षेण तपसा विकारास्तस्करा इव । यत्पुराहरिता नैव प्रवेष्टुं पुनरीशते ॥ २८॥ भावार्थ-आरक्षक (कोटवाल) जेम चोरोने दूर हांकी काढे, तेम भव्य जीव तपथी विकारोने दूर करे छे के जेथी ते पाछा उद्भवता नथी. २८ आपत्स्वेव हि महतां शक्तिराभिव्यज्यते न संपत्सु । अगुरोस्तथा न गंधःप्रागस्ति यथामिपतितस्य ॥ २९॥ भावार्थ-महापुरुषोनी शक्ति संपत्तिमां नहि पण
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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