________________
(५१) प्रकारनीज शृंखला छे. जेनाथी बद्ध थयेला माणसो दोडता फरे छे अने अनाथी मुक्त थयेला पंगुनी जेम बेसी रहे छे. १७. ___ आरंभगुर्वी क्षयिणी क्रमेण लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात् । दिनस्य पूर्वाईपराईभिन्ना छायव मैत्री खलसज्जनानाम् ॥१८॥
भावार्थ-जेम दिवसना पूर्वभागनी छाया प्रथम मोटी अने पछी आस्ते आस्ते नानी थती जाय छे अने बपोर पछी प्रथम नानी अने पछी आस्ते आस्ते मोटी थती जाय छे, तेम दुर्जन अने सज्जनोनी मित्रता समजवी एटले दुर्जननी मैत्री अनुक्रमे ओछी थती जाय अने सज्जननी मैत्री अनुक्रमे वृद्धि पामती जाय छे. १८ आशाया ये दासा-स्ते दासाःसंति सर्व लोकस्य। आशा येषां दासी तेषां दासायतेलोकः ॥१९॥ __भावार्थ-जेओ आशाना दास छे, तेओ सर्व लोकना दास छे, अने जेमणे आशाने दासी बनावी छे, तेमनी आगळ लोको दास थइने रहे छे. १९