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________________ ( ४७५ ) बीत गई थोडी रही मन आकुल मत होय ॥ धीरज शबको मित्र है करी कमाई मत खोय ॥ ९ ॥ बुद्धिशाली ने वली गुणीयल पुरुषज होय ॥ वचन पालबाथी अधिक प्रिय बीजं नव कोय ॥ १० ॥ बाजीगर बाजी रचे करे कमलको फूल ॥ दोय घडीका देखना आखर धूलकी धूल ॥ ११ ॥ बुद्धिमानने जगतमां नथी शत्रुनो त्रास ॥ वरसालें पलळे नही जो होय छत्री पाश ॥ १२ ॥ बीडी म पीशो बांधवा बीडीथी बल जाय ॥ वीर्य हटे आयुष घठे अंते अंधो थाय ॥ १३ ॥ बाललग्न कुचालथी थाय घणुं नुकशान ॥ प्रजा बधी निर्बल हुवे थई न शके विद्वान ॥ १४ ॥ बांधी मूठी लाखकी उघाडी वा खाय ॥ लाख मूलको कागडो क्रोडे कोठी जाय ॥ १५ ॥ बेसण न दीये बोल कोल जावा न दीये कुललाज ॥ पोल फ्लंग विच दोलतां उदय भयो प्रजराज ॥ १६ ॥ बालपणाम पुरुष जे विद्या भण्यो न होय ॥ पशुतुल्य ते जगतमां अवयव नरमा जोय ॥ १७ ॥
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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