SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 485
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४७४) फाटयुं पगर्नु पगरखु नवं लेतांशी वार ॥ ए, मरण वहुर्नु गणे कहिये तेह गमार ॥१॥ बल थकी बुद्धि वडी जो उपजे उरमाय ॥ जंबुके जिम नाखीयो कूपमांहि मृगराय ॥१॥ बडे बडे कु दुःख पडे छोटेशें दुःख दूर ॥ तारे शब न्यारे रहे ग्रहे चंद्र ओर सूर ॥२॥ बनीयां फूल गुलाबका धूप पडे करमाय ॥ पत्थर मार्या नहि मरे पण मंदीशे मर जाय ॥३॥ बगडे सारु सहजमा सुधरे नही सदाय ॥ फाटयुं दूध फरी कदी दूध नही ते थाय ॥ ४ ॥ बहोत गई थोडी रही ते पण चाली जाय ॥ सुकृत कर्म कर्या विना फोकट नरभव जाय ॥५॥ बुरुं न ईच्छिये पारकुं लई विवेक मनमाय ॥ भुंडूं करतां परतणुं प्रथम आपणुं थाय ॥६॥ बीडीथी आयुष घटे तन धन बलनी हाण ॥ भ्रष्ट हुवे निजधर्मथी बीडी त्यजो सुजाण ॥७॥ ब्रह्म चिन्ह वातो करे चले आपकी चाल । जंबुक मन फुल्यो फरे ओढ सिंहकी छाल ॥८॥
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy