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________________ ( ४७२) पागभाग प्रकृति सुरत बोली अकल विवेक ॥ अक्षर मिले न एकठा सोधो मुलक अनेक ॥३॥ पाणीमें पाणी मिले मिले कीचमे कीच ॥ साधुमे साधु मिले मिले नीचमे नीच ॥ ४॥ ... पारसमे ओर संतमे बडो अंतरो जान ॥ वो लोहा कांचन करे वो करे आपसमान ॥५॥ पहेले पोरे सहु कोइ जागे बीजे पहोरे रोगी॥ त्रीजे पहोरे तस्कर जागे चोथे पहोरे योगी॥६॥ पावसेरके पात्रमे केशे शेर समाय ॥ छोटे नरके पेटमे बडी बात न समाय ॥ ७ ॥ प्रीत थवी तो सहेल है निभाववी मुस्केल ॥ पीतां केफ पडे मजा जीरववा नहि सहेल ॥ ८॥ प्रेमें प्राण टकी रहे प्रेमे प्राणज जाय ॥ प्रेमे प्राण अपाय छे प्रेमें प्राण रखाय ॥९॥ पडति इच्छे परतणी चढति आप चहाय ॥ पण पापी शुं करी शके धार्यु धणीनुं थाय ॥१०॥ प्रभुनामकी लूट है लूंट शके तो लूंट ॥ अंतकाल पस्तायगो प्राण जायगा छूट ॥११॥
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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