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नारी देह दीकी करी पुरुष पतंगीआ होय ॥ जग सघटुं खूची रह्यं निकशे विरला कोय ॥ ९॥ नारी मदन तलावडी बूड्यो सयल संसार ॥ जाण अजाण सहुको पडे कोई नहि काढणहार॥१०॥ नारी नीच स्वभावनी जगमां करी जगेश॥ नर भूली तेहमा भमे पामे दुःख विशेष ॥ ११॥ . नारी गुमावे तीन गुन जो नर पाशे होय ॥ भक्ति मुक्ति निज ज्ञानधन पेठ शके नहि कोय ॥१२॥ निंदक सरिखो पापीओ भुंडो कोई न दीठ ॥ वली चंडाल समते कह्यो निंदक मुख अदीठ ॥१३॥ नही कहेवी कोईने मुखथी कडवी वाण ॥ छेदे ते जन हृदयने जिम भेदे छे बाण ॥१४॥ नीकी सो फीकी लगे बिन अवसरकी बात ॥ फीकी सो नीकी लगे कहीयें समयपर बात ॥१५॥ परघर दुःख न रोवणुं वेची न शके कोय ॥ भरम गुभावे आपणुं खरेज मूरख होय ॥१॥ परधन जाकुं झेर है परस्त्री मात समान ॥ एम करतां प्रभु ना मिले तो तुलसीदाश जमान ॥२॥