________________
(४४६) किं वज्रमात्रो गिरिस्तेजो यस्य विराजते स बलवान् स्थूलेषु कः प्रत्ययः ॥१॥ ___ भावार्थ-हस्ती स्थूल छतां ते अंकुशने वश थाय छे, तेथी शं हस्ती जेवो मोटो अंकुश छ ? दीपक प्रज्वलित थतां अंधकार नष्ट थाय छे, तेथी शुं दीपक तिमिर समान विस्तृत छे ? वज्रथी हणाया पर्वतो पतित थाय छे तेथी पर्वतो जेवू मोटुं वज्र होय छे ? ना, परंतु जेनामां तेज छे-ते पुरुष बलवान् छे. स्थूल वस्तु होय, तेथी शुं? १
हर्तुतिन गोचरं किमपिशं पुष्णाति सर्वात्मना ह्यर्थिभ्यः प्रतिपद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद्धिं पराम् । कल्पांतेष्वपि न प्रयाति निधनं विद्याख्यमंतर्धनं येषां तान्प्रति मानमुज्झत नृपाः कस्तैः सह स्पर्धते ॥२॥
भावार्थ-जे हरण करनारने अगोचर छे, सर्वरीते कंई विचित्र प्रकारना सुखनुं जे पोषण करे छे, अर्थिजनोने आपवा जतां जे निरंतर वृद्धि पामे छे अने