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________________ (४३५ ) स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा। वक्रमेव शुनः पुच्छं षण्मासनलिकाधृतम् ॥५०॥ भावार्थ-पडेल स्वभाव, उपदेशथी पण अन्यथा करवा शक्य नथी. कुतरानी पूंछडीने छ मास नळीमां नाखो, तो पण ते वक्रनी वक्रज रहेवानी. ५० संतोषस्त्रिषु कर्त्तव्यः स्वदारे भोजने धने। त्रिषु चैव न कर्त्तव्यो दाने चाध्ययने तपे ॥५॥ भावार्थ-स्वदारा, भोजन अने धन-ए ऋण वस्तुमां संतोष करवो, अने दान, अभ्यास तथा तपमा संतोष न करवो. ५१ स्थाने निवासः सकलं कलत्रं पुत्रः पवित्रः स्वजनानुरागः । न्यायान्न वित्तं स्वहितं च चित्तं निर्दभधर्मस्य सुखानि सप्त ॥ ५२॥ भावार्थ-पोताना स्थाने निवास, सद्गुणी बी, पवित्र पुत्र, स्वजनोपर अनुराग, न्याययुक्त भोजन अने धन तथा जेमा पोतार्नु हित समायेलुं छे एवं चिच-ए निर्दभ (निष्कपट) धर्मना सात सुखी छे. (दमरहित धर्म करवाथी ए सात सुखो प्राप्त थाय छे.) ५२
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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