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(४१४) भावार्थ-ज्यारे पुरुष निर्धन थाय छे, त्यारे तेनुं शील तथा श्रुत क्षीण थाय छे, प्रज्ञा (बुद्धि) हणाइ जाय छ, दीनता वधे छे, क्षमा अने लज्जा दूर थई जाय छे, तेज जर्जरित बने छ, मति भ्रमित थाय छे, याचकता वधे छे अने वधारामां तेनुं कुटुंब पण तेनी साथे विरोध करवा तत्पर थाय छे. ३० शीलं रक्षतु मेधावी प्राप्तुमिच्छुः सुखत्रयम् । प्रशंसां वित्तलाभं च प्रेत्य स्वर्गे च मोदनम् ३१ ___ भावार्थ--प्रशंसा, धनलाभ अने परभवमां स्वर्गना सुखो-ए त्रण प्रकारना सुखने जो प्राप्त करवानी इच्छा होय-तो धीमान् पुरुषोए पोताना शीलनुं बराबर संरक्षण करवू. ३१ शशिनीव हिमाद्नां धर्मार्तानां रवाविव । मनो न रमते स्त्रीणां जराजीणेंद्रिये पतौ ॥३२॥
भावार्थ-शीतथी अकळायला पुरुषोने जेम चंद्रमापर आदर न होय अने गरमीथी अकलायता पुरुषोने जेम सूर्यपर आदर न होय-तेम जराथी जीर्ण