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________________ (२५४) भावार्थ:--प्रजानुं रक्षण करनार राजाने प्रजाना धर्मनो छठो भाग मळे छे, तेम जो रक्षा न करे, तो तेने अधर्मनो पण छट्ठो भाग मळे छे. ३३ पंगुमंधं च कुब्जं च कुष्टांगं व्याधिपीडितम् । आपत्सु च गतं नाथं न त्यजेत्सा महासती ३४ __ भावार्थ-पोतानो पति कदाच पांगळो होय, आंधळो होय, कुबळो के कोढीयो होय, व्याधिथी पी. डातो होय, आपत्तिमा आवी पड्यो होय-एवा पण पोताना धणीनो जे स्त्री त्याग के अनादर न करे-ते महासती जाणवी. ३४ पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने । पुत्राश्च स्थविरे भावे न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति॥३५॥ भावार्थ-कौमार-अवस्थामां पिता, जेनुं रक्षण करनार होय छे, यौवन वयमां पति, जेनुं रक्षण करे छे, अने वृद्धपणामां पुत्रो जेनी रक्षा करे छे, पण स्त्री कदापि स्वतंत्रताने योग्य नथी. ३५ . पूगीफलानि पत्राणि राजहंसास्तुरंगमाः। स्थानभ्रष्टा न शोभंते सिंहाः सत्पुरुषा गजाः३६
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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