SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २३० ) भावार्थ – संसारनो उच्छेद करवा विधिपूर्वक ईश्वरपद्नुं पण ध्यान न धर्युं, स्वर्गना द्वार उघाडवामां समर्थ एवा धर्मनुं पण उपार्जन न कर्यु तेमज स्त्रीना पीन स्तन तथा उरुयुगलनुं स्वप्नमां पण आलिंगन न कयुं, तेथी अमे केवल माताना यौवनरूप वनने छेदवामां मात्र कुठाररूपज थया. ५० नभोभूषा पूषा कमलवनभूषा मधुकरो वचोभूषा सत्यं वरविभवभूषा वितरणम् । मनोभूषा मैत्री मधुसमयभूषा मनसिजः सदो भूषा सूक्तिः सकलगुणभूषा च विनयः॥ ५१ ॥ भावार्थ - आकाशनं भूषण सूर्य छे, कमळवननुं भूषण मधुकर छे, वचननुं भूषण सत्य छे, द्रव्यकुं भूषण दान छे, मननुं भूषण मैत्री, वसंतसमयनुं भूषण कामदेव, सुवचन ए सभानुं भूषण छे अने विनय - ए बधा गुणोनुं भूषण छे. ५१ न निमित्तद्विषां क्षमो नायुर्वैद्यकविद्विषाम् । गुरुद्विषां न हिज्ञानं न मुक्तिर्देवविद्विषाम् ॥ ५२॥
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy