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( २१६ नथी, परंतु अवसरे वृक्षोनी जेम पूर्वतपथी संचेल भाग्यज पुरुषने फळे छे. १०
नरपतिहितकर्ता द्वेष्यतां याति लोके जनपदहितकर्ता त्यज्यते पार्थिवेन ।
इति महति विरोधे वर्तमानेऽसमाने नृपतिजनपदानां दुर्लभः कार्यकर्ता ॥११॥
भावार्थ-राजानो हितकर्ता लोकोमा द्वेषपात्र थाय छे, अने देशनो हितकर्ता राजाथी तजाय छे. ए रीते असमान अने महान् विरोध वर्तमान थतां राजा अने देशचें कार्य करनार पुरुष दुर्लभ छे. ११ नकः स्वस्थानमासाद्य गजेंदमपि कर्षति । स एव प्रच्युतः स्थाना-च्छुनापि परिभूयते ॥१२ ___ भावार्थ-नक (जळजंतु विशेष) पोताना स्थानमा रहेतां गजेंद्रने पण घसडी जाय छे, परंतु तेज पोताना स्थानथी भ्रष्ट थतां एक सामान्य कुतराथी पण पराभव पामे छे. १२