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________________ (१५६ ) भावार्थ-पाणीमां तेल, खळ पुरुषमा गुह्य, (छानी. वात) सुपात्रे दान अने सुज्ञ जनमां शास्त्र-ए अल्प छतां वस्तुशक्तिथी स्वयमेव विस्तारने पामे छे. १९ जानीयात्संगरे भृत्यान् बांधवान्व्यसनागमे । आपत्कालेषु मित्राणि भार्यां च विभवक्षये २० भावार्थ रणसंग्राममां सेवकोनी खबर पडे छे, संकटवखते बांधवोनी खबर पडे छे, आपत्तिसमये मिबोनी अने निर्धनता वखते स्त्रीनी खबर पडे छ अर्थात् तेमनी कसोटी थाय छे. २० जातेति कन्या महती हि चिंता कस्मै प्रदेयति महान्वितर्कः । दत्ता सुखं यास्यति वा न वोत कन्यापितृत्वं खलु नाम कष्टम् ॥ २१॥ भावार्थ-कन्या जन्म पामे, एटले मोटी चिंता थई पडे छे के हवे आ कोने आपवी ? वळी आप्या पछी पण हमेशां विचार थया करे छे के ए सुखी थशे के नहि ? अहो ! खरेखर ! कन्याना पिता थq-ए पण मोटामां मोटुं कष्ट छे. २१
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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