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________________ . (१५० ) जनार्दन (भगवान् ) अने जनक-ए पांच जकार दुर्लभ कहेवामां आव्या छे. १-२ जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति । अन्नदाता भयत्राता पंचते पितरः स्मृताः॥३॥ __भावार्थ-जन्म आपनार, धर्ममार्ग बतावनार, शुभ विद्या आपनार, अन्नदाता अने भयथी बचावनार ए पांचने पितासमान कहेल छे. ३ जीवंतोऽपि मृताः पंच व्यासेन परिकीर्तिताः । दरिदो व्याधितो मूर्खः प्रवासी नित्यसेवकः ४ __ भावार्थ-व्यासमुनिए कह्यु छ के-दरिद्र, रोगी, मूर्ख, प्रवासी (नित्य मुसाफर ) अने सदा सेवक-ए पांच जीवता छतां मृतसमान छे.४ जलदो भास्करो वृक्ष-श्चंदमा धर्मदेशकः। एतेषामुपकाराणां नास्ति सीमा महीतले ॥५॥ भावार्थ--मेघ, सूर्य, वृक्ष, चंद्रमा अने धर्मोपदेश आपनार-ए पांचेना उपकारोनी जगतमां सीमा (हद ) नथी. अर्थात् बहु उपकारी छे. ५
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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