SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४७ ) भावार्थ - चातक पोताना अनुमानथी मेघ पासे पाणीनी प्रार्थना करे छे. परंतु ते तो पोतानी उदारताथी समस्त पृथ्वीने जळमय बनावी दे छे. २२ चित्रकृदधकर्त्ता च कुवैद्यः कुनरेश्वरः । चत्वारो नरकं यांति पंचमो ग्रामकूटकः ॥ २३॥ भावार्थ — चित्रकार, पाप करनार, खराब वैद्य, अन्यायी राजा अने पांचमो गामने सतावनार - ए पांचे नरके जाय छे. २३ चैत्ये पूजा गुरौ भक्ति-दींने दानं जपस्तपः । सर्वाधिदुर्गभंगाय पंचैते वज्रमुद्गराः ॥ २४ ॥ भावार्थ – चैत्यपूजा, गुरुभक्ति, दनिने दान, जप तथा तप-ए पांच-सर्व आधिरूप किल्लाने भेदवामाटे वज्रना मुद्गर समान छे. २४ चेन्मुंचति घनोंऽगारांश्चेन्मज्जयति तारकः । राजा चेत्कुरुतेऽन्यायं का तत्र स्यात्प्रतिक्रिया२५ भावार्थ- जो मेघ अंगारा वरसावे, तारु पोते डूबे या डूबाडे अने राजा पोते अन्याय करे - त्यां बीजो उपाय शुं चाले. २५
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy