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________________ (१४३) नता रुष्टा रामा यदरचि न रामाय विनतिर्गतं मे जन्माग्र्यं न दशरथजन्मा परिगतः ॥१२॥ भावार्थ - अहो ! रामा ( स्त्री ) नुं में निरंतर ध्यान धयुं, पण श्रीपरमात्मानी मूर्तिनुं एक क्षणभर पण ध्यान न धर्यु, स्त्रीना अधरामृतनुं बराबर रीते पान कयुं, परंतु परमात्माना चरणामृतनुं पान न कर्यु, रुष्टमान थयेल रमणीना चरणे पड्यो, परंतु परमात्माना पगे न पड्यो. अहो, एम करतां मारो जन्म गयो छतां श्री परमात्मा मने प्राप्त न थया. १२ चांडालश्च दरिद्रश्च द्वावेतौ सदृशाविह । चांडालस्य न गृह्णति दरिद्रो न प्रयच्छति ॥ १३॥ भावार्थ-चांडाळ अने दरिद्र - ए बने समान कहेला छे.. जुओ, चांडालनुं दान कोई लेता नथी अने दरिद्र पोते दान आपतोज नथी. १३ चंद्रः क्षयी प्रकृतिवक्रतनुर्जडात्मा दोषाकरः स्फुरति मित्रविपत्तिकाले । मूर्ध्ना तथापि विधृतः परमेश्वरेण नैवाश्रितेषु महतां गुणदोषशंका ॥ १४ ॥
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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