________________
( १२८ )
न शुश्रूयते हा कष्टं पुरुषस्य जीर्णवयसः पुत्रो - ऽप्यमित्रायते ॥ १५ ॥
भावार्थ - अहो ! वृद्धावस्था आवतां गात्र संकोचने पामे छे, गति गलित अने दंतावलि भ्रष्ट थइ जाय छे, दृष्टि नाश पामे छे, बधिरता वधे छे अने मुखमांथी लाळ पडवा मांडे छे, स्वजनो वचन मानता नथी, स्त्री सेवा साधती नथी अने पोतानो पुत्र पण एक शत्रु जेवो बनी जाय छे. अहो ! वृद्ध पुरुषने एवी रीते अनेक संकष्ट सहन करवां पडे छे.
१५
गंधः सुवर्णे फलमिक्षुदंडे नाकारि पुष्पं खल चंदनेषु । विद्वान्धनाढ्यो न तु दीर्घजीवी धातुः पुरा कोऽपि न बुद्धिोऽभूत् ॥ १६ ॥
भावार्थ- सुवर्णमां सुगंध, शेलडीमां फळ अने चंदनमां पुष्प तथा विद्वान्ने धनाढ्य न बनाव्या. अहो ! तेथी एम लागे छे के पूर्वे विधाताने कोइ दीर्घदर्शी बुद्धि आपनार न हतो, नहि तो एम न करत. १६