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(९०) भावार्थ-कुमंत्रीथी राजा, संगथी यति, लालनथी पुत्र, अनभ्यासथी ब्राह्मण, कुपुत्रथी कुल, दुर्जनोपासनाथी शील, मद्यथी लज्जा, संभाळ न राखवाथी खेती, प्रवासथी स्नेह, अप्रणयथी मैत्री, अनीतिथी समृद्धि अने त्याग तथा प्रमादथी धन विनष्ट थाय छे.८ कृतकर्मक्षयो नास्ति कल्पकोटिशतैरपि। अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ॥९॥
भावार्थ सेंकडों के कोटियुगोजतां पण कृतकर्मनो क्षय थतो नथी. करेल शुभाशुभ कर्म अवश्य भोगववांज पडे छे. ९ कचिद्वीणानादः क्वचिदपि च हाहेति रुदितं क्वचिद्विद्वद्गोष्ठी कचिदपि सुरामत्तकलहः । कचिदम्या रामा कचिदपि जराजर्जरतनुर्न जाने संसारः किममृतमयः किं विषमयः ॥१०॥
भावार्थ-क्यांक वीणाना नाद थाय छे अने क्यांक हाहा-एवं रुदन थाय छे, क्यांक विद्वानोनी गोष्ठी चाली रही छे अने क्यांक मदिराथी मदोन्मत्त कलह