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________________ कुमार विहा रसतकम् || ।। ३३ ।। दवाओ पतंगना नाशनुं कारण थाय बे, त्यारे आ दीवा मां पतंगनो ना-शतो नथी. ते दवाओ श्री वीतराग - पार्श्वनाथ प्रजुना चरणनी समीप रहेवाथी अंजन ने स्नेहथी रहित बे. बीजा सामान्य दीवा ओमां काजळ थाने स्नेह एटले तेल जोइए छीए, त्यारे या दीवाथी काजळ थतुं नथी, तेमज तेमां स्नेह - तेलनी जरुर पमती नथी. ३१ अस्मिन्नस्थां स धत्तां चिरमधिमनसं यस्य साक्षादिक्षा स्वर्गस्वर्णाद्रिकूटस्फटिकगिरितटीरोहणांतः स्थलीषु । आरुह्योत्तुंग श्रृंगां गुरुशिखरशिखां यत्र देशांतरस्थानित्थं संबोधयंति प्रचलपटमयैः पाणिभिः केतुदंडाः ॥ ३२ ॥ अवचूर्णिः - अस्मिन् अधिमनसं चिरं प्रस्थां स धत्ताम् यस्य उत्तुंग श्रृंगां गुरुशिखर
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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