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अ आ जगत्ने काम क्रोधादि उ दोषथी रहित करनारा श्री देवाधिदेवना चरणने बाहेरनी दीवालोने स्पर्श करी अंदर पेवेसा पोताना किरणोना अन नागथी आलिंगन करे . ११
विशेषार्थ-" देवाधिदेव नगवते आ जगत्ने कामक्रोधादि उ दोषथी रहित करेलु , तेथी जो तेमना चरणमां वंदना करी होयतो हुं पण कलंकना दोषथी रहित थश" आवी इच्छाथी चं ते चैत्यनी दीवासोने किरणो वो स्पर्श करी लगवंतना चरणमांप.चैत्यनी आंगणांनी स्फाटिकमणिमय भूमिमां चंजनुं प्रतिबिंब पडे , ते उपरथी कविए आ उत्प्रेक्षा क
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रेली . १
अंतर्लब्धप्रवेशैः करनिकरभरैर्भशयन्नंधकारप्राग्भारं देवमूर्ति बहिरपि नमतां दर्शयन् सप्रकाशम् ।