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________________ काशं येन तत् ।। एU ॥ नावार्थ--नचा विटकथी आकाशने व्याप्त करी रहेता जे. चैत्यनी सुंदर शोला जोवाने जंची मोक करी आदरवाळी दृष्टिओने धारण करता नगरना लोको एक बीजाने न जोइ शकवाथी अने परस्पर गतीमोना संघट्ट ने सश्ने क्रोध नत्पन्न थवाने बौधे राजमार्गनी अंदर तेमनो कोलाहन निरंतर थया करे . एए विशेषार्थ-जाहेर रस्तानी अंदर चालता लोको उंची डोके करी कुमारविहार चैत्यनी शोनाने जोतां परस्पर जोइ शकता नथी, तेम वली परस्पर गतीओना दबावाथी तेमने क्रोध उत्पन्न थाय . तेथी लोकोनो * विटंक शब्दनो अर्थ छजां थाय छे, जनी उपर पारेवांओ बसे छे ते. तेनुं बीजु नाम ' कपोतपाली' कहवाय छे.
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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