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घरना चिन्होने धारण करनारा श्री पार्श्वनाथ प्रतुना ते चरणो नखरुपी मणिमयदर्पणना तेजरूप जळना गंटाथी तमारा तापने हरण करो. नित्य विकाशी एवां कमलोथी सरोवरनो तिरस्कार करनारा जे प्रजुना चरणोनी मैत्री प्राप्त करी कया प्राणीओ पोतानी तृष्णाने बेदी परम अमृतने नथी प्रा. प्त थया ? ए आश्चर्यनी वात . ५
विशेषार्थ आ श्लोकमां श्री पार्श्वनाथ प्रतुना चरणर्नु वर्णन करेझुं . ग्रंथकार कहे जे के, " ते पार्श्वनाथ प्रतुना चरण तमारा तापने हरो." तापने हरवामां जळनी जरुर , तेथी ग्रंथकार ते चरणना नखरूपी मणिदर्पणना तेजने जळना गंटानुं रूपक आपे . सरोवरना कमलो सूर्यविकाशी होवाथी रात्रेम्सानि पामनारा ने, अने आ प्रजुना चरणरूप कमलो नित्य विकाशी ने ; तेथी ते सरोवरनो तिरस्कार करनारा जे. जे प्राणीओए, प्रजना