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________________ नी पाथी जे कुमारविहार चैत्यनुं स्वरूप सांजली त्या चालती तुंबुरु गंधर्वमधुर गायनकलाने पण तेनी अंदर अंतरायना समूह रूप जाणे बे. १९ विशेषार्थ - इंद्र ज्यारे पोतानी सनामां बेशी तुंबुरु गांधर्वनी मधुर गायन कला सांजले बे, ते वखते देवताओ तेनी आगल कुमारविहार चैत्य - नी या प्रमाणे प्रशंसा करे बे - "हे स्वामी, पृथ्वी उपर कुमारविहार नामे एक एवं चैत्य बे के, ते कल्याणनी प्रशस्ति ( प्रशंसापत्र ) रूप बे, मोक्षमार्ग - मां जवानो मार्ग बे, नेत्रोनुं कामण बे, अने लक्ष्मीने बलात्कारे हरण करवानो मंत्र तंत्र . " या प्रशंसा सांजली इंद्र एटलोबधो ते सांभलवाने इंतेजार था, तेने पछी तुंबरु गांधर्वनुं मधुर गायन तेमां अंतराय रूप थइप बे. ७५ तांस्तान् दृश्यावतंसांस्तुहिनगिरिकुबेराद्विहेमाचलादीन्
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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