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________________ शत्रुमां केषनाव अने मित्रमा प्रेमनाव धारण करे ने अने वळी तेओ देश तथा लोकाचारना संस्कार प्रमाणे वर्ती मलिन थयेला . पए। विशेषार्थ ते चैत्यनी उपर जंचो ध्वजदंग . अने तेमां रहेली घं. टमीओना नाद थाय . ते नाद उपर कवि नत्प्रेक्षा करे ने के, ते ध्वजदंम पोतानी घंटमीओना नादथी लोकोने कहे छे के, “ आ चैत्यनी अंदर रहेसा एकज देव तमारे सेव्य जे. कारणके, ते मित्र तथा शत्रमा समन्नावथी वर्तनार अने संसारना पारने पामेला . बीजा देवताओ तमारे शुं कामना ने अर्थात् बीजा देवताओ सेववा योग्य नथी कारण के, ते देश तथा सोकोना आचार तथा संस्कारोथी मलिन थइ गयेला ने तेमज तेश्रो शत्रु नपर के ष अने मित्र उपर प्रेमने धारण करनारा .” कहेवानो आशय एवो के, आ जगत्मा शत्रु तथा मित्र उपर समान रीते वर्तनार अरिहंत देव एकज
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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