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कणाः चपुनः पूजकाः दमानुजो राजानो वर्तते इत्यध्याहारः । आकल्पः आजरणं । मृगमदः कस्तूरी ॥ ४६॥
लावार्थ-जे चैत्यनी अंदर सुवर्ण कमनना पुष्पो चे, चीनाइ वस्त्रो बे, स्नान- जल पुष्परज , रत्नोनी कांतिरूप दीवीओ डे, विविध जातना मणिओ पोशाकनी आंगीनी शोला , क्षेत्रपातो तेना रक्षको ने, कस्तूरीना कण ते धूपर्नु चूर्ण ने अने राजाओ तेना पूजको ने. ४६
विशेषार्थ-आ श्लोकथी कवि कुमारविहार चैत्यनी साधन सामग्री वर्णवे . चैत्यनी अंदर पुष्प, वस्त्र, स्नात्रजल, दीपिकाओ, पोशाक (आंगी) रक्षको, धूप अने पूजको होवा जोइए तो आ चैत्यने विषे सुवर्ण कमलरूप पुष्प, चीनाइ वस्त्रो, स्नात्रजनरूप पुष्परज, रत्नोनी कांतिरूप दीपिका, विविध जातना मणिरूप आंगी, क्षेत्रपालरूप रदको, कस्तूरीरूप धूप अने राजाओरूप