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पवनना नग्र अनिघातने प्राप्त करी दिशाओना समूहमां व्याप्त थवाथी रुपाना स्तंनोनी कांतिना समूहना परिचयथी सूर्यनी मूर्त्तिने श्वेत करनारा जे चैत्यनी उपर आकाशनी लक्ष्मी दिवसे पण चंज तथा ताराओना समूहवाश्री देखाय ने. ४३
विशेषार्थ ते चैत्यनी अंदर सूर्यकांतमणिोनी रचना घणी , तेथी दिवसे सूर्यनो उदय थतां ते सूर्यकांतमणिमांथी अग्निना तणखा करे . तेओ ध्वजाना वावटाओना पवनथी उग्रथइ दिशाओमां व्यापी जाय , अने सूर्यनी मूर्ति रुपेरी स्तंननी कांति साथे मलवाथी श्वेत थइ जाय , एटले आकाशमां चंड तथा ताराअोनी शोजा देखाय , ते उपरथी कवि कल्पना करे ने, के, दिवसे पण आकाशनी लक्ष्मी चंज तथा तारावानी देखाय . ४३