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(१) श्रीजैनसंघ-गोल (राजस्थान) की ओर से इस ग्रन्थ के मुद्रण के लिये रू० ५००० की सहाय प्राप्त हुई ।
२ (A) देवशा का पाडा (अहमदाबाद) के ज्ञान भंडार के कार्यवाहको तय (B), संवेगी
उपाश्रय (अहमदाबाद) के ज्ञानभंडार के कार्यवाहको तथा (C) ला. द. विद्यामंदिर (अहमदाबाद) के प्रधान अध्यक्ष-इन महानुभावों के द्वारा इस ग्रन्थ के सम्पादन के लिये मल्य हस्तप्रतियाँ प्राप्त हुई।
३ ज्ञानोदय प्रिन्टिंग प्रेस पिंडवाड़ा के मैनेजर फत्तेहचन्द जैन तथा पिंडवाडा की धार्मिक जैन पाठशाला के अध्यापक लघु० स्या. र. के प्रुफरीडोंग में सहायक चम्पकलाल जैन तथा रामानन्द प्रिन्टिंग प्रेस के मेनेजर धर्मप्रचारक संत कवि श्री रामवल्लभदासजी महाराज इन तीनों के उत्साह पूर्ण सहयोग से इस ग्रन्थ का सुवाच्य मुद्रण हो सका ।
अन्त में ग्रन्थ के स्वाध्याय द्वारा मुमुक्षु गण स्याद्वादसिद्धान्त की महत्ता समझ कर अपने परमश्रेय की प्राप्ति के मार्ग में आगे बढे यही एक शुभेच्छा ।
-कार्यवाहकगणभारतीयप्राच्यतत्त्वप्रकाशनसमिति
लघु स्या० र० शुद्धिपत्रक पृष्ठङ्क्त्यको
अशुद्धम् १२।१०
थत्याथ
यथात्थ १४।१०
दन्तयां
द्रव्यतां २०१४
भावादास०
•भावादिसा० २२।१ मन्यत्रा
१मन्यत्र. २८१ व पि०
सर्वाप० म. स्या० २० प्रधाना शुद्धिः पृष्ठ ६४ तमे टिप्पण्यां
"३-'तद्धेतुहेतोस्तद्वेतोरेवातत्त्वम्' इति न्यायात्" इत्यस्य स्थाने "२-'तद्धेतोरेवास्तु किं तेन' इति न्यायात्" इति पठनीयम् ।
बृ. स्या० २० शुद्धिपत्रकम् पृष्ठपंक्त्यको
अशुद्धम्
शुद्धम् ८११२८ 'रूपवव'
रुपवत्त्व ८५/११ कत्वसम्बद्ध
कत्वं सम्बद्ध ९२१२ हेतुरननुगत
हेतुरनुगत