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________________ वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप किया गया है, किन्तु जैनाचार्य संघदासगणी द्वारा किया गया देवत्व का मानवीकरण विशेषतः उल्लेख्य है। शलाकापुरुष वसुदेव असाधारण मानव हैं। उन्हें सारी विद्याएँ और कलाएँ अधिगत हैं। उनका मुख्य लक्ष्य छद्म रूप से हिण्डन करना है। इसी क्रम में वह अपनी कलाओं और विद्याओं .. द्वारा आत्मरक्षा तो करते ही हैं, परोपकार या लोकोपकार भी करते चलते हैं। उनकी असाधारणता से प्रभावित विद्याधरनरेश या बड़े-बड़े भूपति अपनी-अपनी कन्याएँ उन्हें अर्पित करते हैं। इस सन्दर्भ में कथाकार संघदासगणी ने कथा की बुनावट में कहीं-कहीं ततोऽधिक नन्दतिकता से काम लिया है, तो कहीं-कहीं रहस्य और रोमांच का चमत्कारी चित्र भी उपस्थित किया है। कथाकार संघदासगणी ने वसुदेव के कतिपय प्रतिनायकों की भी सृष्टि की है, जिनमें अंगारक, हेफ्फग, नीलकण्ठ और मानसवेग प्रमुख हैं। फिर भी, प्रेम की त्रिकोणात्मक स्थिति कहीं भी नहीं उत्पन्न होने पाई है। यथाप्राप्त नायिकाएँ एकमात्र उनके (वसुदेव के) प्रति ही समर्पित दिखाई गई हैं। उनकी सभी पलियाँ काव्यशास्त्र की दृष्टि से प्राय: स्वकीया और अनुकूल नायिकाएँ हैं। नायिका-प्राप्ति में अधिक संघर्ष का अवसर कदाचित् ही वसुदेव को प्राप्त हुआ है । संघर्ष अधिकतर कला-प्रतियोगिता के रूप में उपस्थित किया गया है। उनके प्रतिनायक, जो प्रायः छद्मवेषधारी विद्याधर या विद्याधरियाँ भी हैं, उन्हें सोई हुई स्थिति में आकाश में उड़ा ले जाते हैं और जब उनकी नींद खुलती है, तब उन्हें वस्तुस्थिति का आभास होता है। वह अपने प्रतिनायक की कनपट्टी पर प्रहार करते हैं और प्रतिनायक असली रूप में आकर अधर में ही उन्हें छोड़ देता है। ऐसी स्थिति में अक्सर उन्हें किसी सरोवर या झील में गिरते हुए दिखाया गया है, या कहीं वह पुआल की टाल पर भी गिरते हैं या विद्याधर या विद्याधरियाँ उन्हें कहीं पर्वतशिखर पर या किसी अज्ञात स्थान में ले जाकर छोड़ देती हैं। महान् पर्यटक तथा वैचारिक प्रज्ञा के धनी वसुदेव न केवल कामिनी-प्रसादनोपाय में चतुर हैं, अपितु अपराजेय योद्धा, अप्रतिम कथाकोविद और कुशल चिकित्सक भी हैं। वह बराबर अपने साथ अंगूठी, कंगन आदि आभूषण तथा रूप और स्वर बदल देनेवाली अंजन-गुटिकाएँ भी रखते हैं, जिनका प्रयोग वह देश, काल और पात्र के अनुसार करते हैं। इस प्रकार, 'वसुदेवहिण्डी' के कथाकार ने वसुदेव के चरित को कहीं-कहीं तो नरवाहनदत्त के चरित से भी उत्कृष्ट रूप में प्रस्तुत किया है। _ 'वसुदेवहिण्डी' में विशाल भारत का वैभवशाली चित्रण उपस्थित किया गया है। राजगृह और चम्पानगरी अथवा मगध-जनपद और अंग-जनपद का गौरवशाली चित्रण उपस्थित करने के क्रम में बिहार का हृदयावर्जक चित्र अंकित किया गया है। हिण्डन के क्रम में वसुदेव पदयात्रा तो करते ही हैं, विद्याधरों या विद्याधरियों द्वास भी एक देश से दूसरे देश में पहुँचा दिये जाते हैं। इस प्रकार, वह अबाधगति से दक्षिण और उत्तर भारत का हिण्डन (परिभ्रमण) करते रहते हैं। __ 'धम्मिल्लहिण्डी' के अलावा 'वसुदेवहिण्डी' में छह विभाग थे : कथोत्पत्ति, पीठिका, मुख, प्रतिमुख, शरीर और उपसंहार (लुप्त) । कथोत्पत्ति, पीठिका और मुख अधिकारों में कथा का प्रस्ताव हुआ है। प्रतिमुख में वसुदेव आत्मकथा का आरम्भ करते हैं। सत्यभामा के पुत्र सुभानु या भानु के लिए १०८ कन्याएँ इकट्ठी की गई थीं। किन्तु, उनका विवाह रुक्मिणी के पुत्र शाम्ब से कर
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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