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________________ ६६ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा तुम्हारी जितनी वधुएँ हैं, वे क्यों अपने पीहर में रहें? यह तुम्हारा धर्म नहीं कि तुम घर न आकर हमें अनाथ बनाये रहो।” वसुदेव ने क्षमा माँगते हुए कहा : “आप जैसी आज्ञा देंगे, वैसा ही करूँगा। मैंने जो कपट मरण (कृत्रिम मरण) के द्वारा आपको कष्ट दिया, मेरे उस अपराध को क्षमा कर दें।" समुद्रविजय चले गये। वसुदेव रोहिणी के साथ प्रीतिसुख का उपभोग करने लगे। कालक्रम से रोहिणी ने एक सुलक्षण पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम 'बलराम' रखा गया। उस रूपवान् पुत्र को देख-देखकर रोहिणी और वसुदेव आनन्द प्राप्त करते हुए दिन बिताने लगे (सत्ताईसवाँ रोहिणी-लम्भ)। अट्ठाईसवें देवकी-लम्भ की कथा है कि एक दिन वसुदेव सुखपूर्वक सोये हुए थे कि प्रात:काल स्तुतिपाठकों द्वारा उच्चारित मंगलपाठ के स्वर से उनकी नींद खुल गई । उसी समय उन्होंने देखा कि एक सौम्य देवी उन्हें अंगुलियों के संकेत से बुला रही थी। वह उसके पास चले गये। वस्तुत:, वह देवी वसुदेव की पूर्वपत्नी बालचन्द्रा की नानी धनवती थी। धनवती ने वसुदेव को सूचना दी कि वेगवती (वसुदेव की पूर्वपत्नी) की विद्या सिद्ध हो गई है और बालचन्द्रा उनका स्मरण कर रही है। वसुदेव के आग्रह पर धनवती उन्हें वैताढ्य पर्वत पर ले गई । वहाँ बालचन्द्रा और वेगवती ने उन्हें प्रणाम किया। इसके बाद वेगवती के माता-पिता ने वेगवती को उन्हें सौंप दिया और धनवती ने बालचन्द्रा को। शुभ मुहूर्त में दोनों पलियों से उनका विवाह हुआ। दहेज में उन्हें विपुल सम्पत्ति प्राप्त हुईं। एक दिन वसुदेव ने उक्त दोनों प्रियतमाओं से कहा : “देवियो ! मुझे बड़े भाई ने आदेश दिया है कि मैं उनकी आँखों से दूर न रहूँ। हम सब एक साथ रहें । तुम्हारे (वसुदेव के) जीवित रहते हुए मेरी कुलवधुएँ पीहर में न रहें। अगर तुम दोनों को पसन्द हो, तो हम शौरिपुर चलें।" सन्तुष्ट होकर दोनों ने यह विचार रखा कि यहीं विद्याधर-लोक में हमारी जो बहनें (सपलियाँ) रहती हैं, वे भी इसी जगह आकर एकत्र भाव से आपका दर्शन करें। वे सभी जब आ जायेंगी, तब हम एक साथ (आपके) बड़े भाई के पास चलेंगी। तब, वसुदेव ने अपने हाथ का लिखा परिचय-पत्र धनवती को दिया। वह, उसे लेकर चली गई और उसी परिचय-पत्र के आधार पर वसुदेव की अन्य विद्याधर-पलियों-श्यामली, नीलयशा, मदनवेगा और प्रभावती को ले आई। तब, बालचन्द्रा ने विद्याबल से विमान विकुर्वित किया और वसुदेव अपनी उक्त छहों विद्याधरपलियों के साथ विमान पर सवार होकर शौरिपुर पहुँच गये। वहाँ वसुदेव के अग्रज समुद्रविजय ने सपत्नीक उनके रहने के लिए पहले से ही स्वतन्त्र भवन सजाकर रख दिया था। ____ कुछ दिनों के बाद बड़े भाई की अनुमति से वसुदेव अपनी सभी मानुषी पलियों को ले आये। वे थीं—श्यामा, विजयसेना (विजया), गन्धर्वदत्ता, सोमश्री (मित्रश्री), धनश्री, कपिला, पद्मा, अश्वसेना, पुण्ड्रा, रक्तवती, प्रियंगुसुन्दरी, सोमश्री, बन्धुमती, प्रियदर्शना, केतुमती, भद्रमित्रा, सत्यरक्षिता, . पद्मावती, पद्मश्री, ललितश्री और रोहिणी। ये सभी अपने-अपने परिवारों के सदस्यों तथा अक्रूर, जर, कपिल, बलराम आदि कुमारों के साथ आईं । इन सबके साथ वसुदेव परम प्रीति का अनुभव करते हुए सुखपूर्वक रहने लगे।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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