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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा साथ गाय, भैंस और धन-धान्य से समृद्ध गृहपंतियों से भरे मार्गवर्ती गाँवों और जनपदों को देखते हुए चल रहे थे। रास्ते में दूत उन्हें क्रम से प्राप्त वनखण्डों, आयतनों (मन्दिरों) और तीर्थों से परिचित कराता जा रहा था। सुखपूर्वक पड़ाव डालते और प्रातराश (कलेवा) करते हुए वह सबके साथ मगध-जनपद पहुँचे और वहाँ एक सनिवेश में ठहर गये। वहाँ से वह राजा जरासन्ध तारा भेजे गये रथ पर सवार होकर राजगृह नगर के निकट उपस्थित हुए। नगर के समीप दृढ़ और कठिन शरीर-हाथवाले सोलह आदमी खड़े थे। उन्होंने वसुदेव को प्रणाम किया और फिर आपस में कछ बातचीत की। दत ने वसदेव से कहा : “आप क्षणभर यहाँ विश्राम करें। डिम्भक शर्मा आपके समीप आयगा । उसके साथ ही आप नगर में प्रवेश करेंगे।"
तब वसुदेव रथ से उतरकर पुष्करिणी के निकटवर्ती एक उद्यान में चले गये, जो उजड़ा हुआ था। वसुदेव के पूछने पर दूत ने बताया कि “इस उद्यान का स्वामी बहुत दिनों से प्रवास में है, इसलिए उपेक्षा के कारण इसकी रमणीयता नष्ट हो गई है। लोग अब इसके निकटवर्ती उद्यान में रमने लगे हैं।” वसुदेव और दूत इस प्रकार बातचीत कर रहे थे कि कमर कसे हुए चार आदमी वहाँ आये। वे पुष्करिणी में अपने हाथ-पाँव धोकर वसुदेव के निकट उपस्थित हुए। दो आदमियों ने उनके पैर और दो ने उनके हाथ दबाना शुरू किया। शेष बारह आदमी अपने हाथों में विभिन्न प्रकार के हथियार लिये उनके पीछे खड़े हो गये। बातचीत में वसुदेव का ध्यान बँटा हुआ था कि उन हथियारबन्द लोगों ने उन्हें बन्दी बना लिया। वसुदेव ने उनसे पूछा : “किस अपराध में मुझे बन्दी बनाया गया है ?" तब दूत ने उनसे कहा : “हम स्वेच्छाचारी नहीं हैं। ज्योतिषी ने राजा जरासन्ध से कहा है कि 'जो आपकी पुत्री इन्द्रसेना को पिशाच के आवेश से मुक्त करायगा, वही आपके शत्रु का पिता होगा।' यही (शत्रु का पिता होना ही) आपका अपराध है।"
उसके बाद वे अस्त्रधारी, वसुदेव को पेड़ों से आच्छादित सघन प्रदेश में ले गये। वहाँ वसुदेव ने उनपर वज्रमुष्टि का प्रहार किया। तब वे म्यान से तलवार निकालकर वसुदेव को मार डालने के लिए उद्यत हो गये । वसुदेव भयत्रस्त होने की अपेक्षा अभयकारक 'नमस्कार-मन्त्र' जपने लगे। तभी, उन्हें कोई, जिसका रूप वह नहीं देख सके, ऊपर आसमान में उठा ले गया। बहुत दूर ले जाकर उसने उन्हें धरती पर छोड़ दिया।
वहाँ वसुदेव को एक वृद्धा स्त्री दिखाई पड़ी। वसुदेव ने अनुमान लगाया कि उसी ने उनका उद्धार किया है। पूछने पर उसने अपना परिचय देते हुए उनसे कहा कि वह दक्षिण श्रेणी में स्थित वैजयन्ती नाम की विद्याधरनगरी के राजा नरसिंह की भीगीरथी नाम की पत्नी है। इस समय उसका पुत्र बलसिंह वैजयन्ती का शासक है। उसकी पुत्री अमितप्रभा का पति, अर्थात् उसका जामाता गान्धार है, जो पुष्कलावती में रहता है। उसी की पुत्री (अर्थात् वृद्धा की नातिन) प्रभावती उनका (वसुदेव का) स्मरण करती, दुःख में पड़ी रहती है।
उसके बाद वह वृद्धा वसुदेव को क्षणभर में पुष्कलावती ले गई। वहाँ उन्हें मंगलस्नान कराया गया। नया वस्त्र पहनकर वह छत्र-शोभित रथ पर सवार हुए और जयजयकार के बीच नगर में आये । उस अवसर पर नगर की विशेष सजावट की गई थी। खिड़कियों में खड़ी युवतियाँ रूपवान् वसुदेव को देखकर प्रभावती के सौभाग्य पर ईर्ष्या कर रही थीं।