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________________ ५४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा देवी श्यामली आपके दर्शन चाहती हैं।” वसुदेव ने सहज प्रसन्न होकर कहा: “कलहंसी ! मुझे प्रिया श्यामली के पास ले चलो; उसका भी दुःख दूर हो जाय।” वह प्रसन्न हुई और वसुदेव को साथ लेकर उड़ गई। लेकिन, कलहंसी जब वसुदेव को वैताढ्य की ओर न ले जाकर दूसरी दिशा की ओर ले चली, तब उन्होंने समझ लिया कि निश्चय ही यह कोई धोखा देनेवाली दुष्ट स्त्री है । तब उन्होंने मुट्ठी बाँधकर उस स्त्री की कनपट्टी पर तीव्र प्रहार किया। चोट खाते ही कलहंसी ने अपना छद्मरूप छोड़कर अंगारक का रूप धारण कर लिया और डरकर उसने उन्हें वहीं छोड़ दिया और स्वयं गायब हो गया । निराधार वसुदेव आकाश से एक झील में गिर पड़े। झील से बाहर निकलकर वसुदेव विश्राम करने लगे, तभी उन्हें शंख की ध्वनि सुनाई पड़ी। उन्होंने अनुमान लगाया कि निकट में ही कोई नगर है । सुबह होने पर वह नगर के निकट गये। पूछने पर पता चला कि वह इलावर्द्धन नगर है। नगर बड़ा समृद्धिशाली था । वसुदेव एक व्यापारी की दुकान में पहुँचे। व्यापारी ने उन्हें बैठने के लिए आसन दिया । दुकान में उनके बैठते ही व्यापारी को एक लाख का मुनाफा हुआ। परितुष्ट व्यापारी ने उनसे निवेदन किया कि " आप मुझपर कृपा करके आज मेरे यहाँ भोजन लेना स्वीकार करें ।” उन्होंने स्वीकृति दे दी। इसके बाद व्यापारी बोला : “किसी कारणवश मैं बाहर जा रहा हूँ, जबतक लौहूँ, तबतक आप यहीं विश्राम करें ।” उसके बाद, वह अपनी गद्दी पर एक रूपवती नौकरानी को बैठाकर चला गया । . उस नौकरानी के मुँह से बराबर लहसुन की बदबू आती थी, इसलिए वह पूछे गये प्रश्नों का उत्तर मुँह घुमाकर देती थी । वसुदेव ने उससे कुछ ओषधि - द्रव्य मँगवाये और उन्हें घी में खरल कर लीयन्त्र में डाल दिया। उसके बाद उनसे गोलियाँ तैयार कीं । उन गोलियों के प्रयोग से नौकरानी बालिका के मुँह की बदबू दूर हो गई और कमल की खुशबू आने लगी । व्यापारी लौटकर आया और नौकरानी के, जिसका नाम लशुनिका था, मुँह से निकलनेवाली कमल की खुशबू को लखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और वसुदेव को अपने घर ले जाकर ठाटबाट से स्वागत किया। उसके बाद अपनी पुत्री रक्तवती और लशुनिका की पूर्वभव - कथा कहकर वसुदेव को उनका परिचय दिया । साधु शिवगुप्त ने व्यापारी को बताया था कि रक्तवती अर्द्धभरत के पिता की पत्नी बनेगी और उसकी पहचान के चिह्न के बारे में कहा था कि दुकान में जिसके पैर पड़ते ही एक लाख का मुनाफा होगा और दुर्गन्धमुखी लशुनिका सुगन्धमुखी हो जायगी, वही रक्तवती का पति होगा । इसके बाद शुभ लग्न में व्यापारी ने अपनी पुत्री रक्तवती का वसुदेव के साथ पाणिग्रहण करा दिया। वसुदेव परमसुन्दरी रक्तवती के साथ विषय-सुख का अनुभव करते हुए सुखपूर्वक रहने लगे (ग्यारहवाँ रक्तवती - लम्भ) । एक दिन वर्षाऋतु में, व्यापारी (रक्तवती के पिता) के अनुरोध पर वसुदेव इन्द्र-महोत्सव देखने महापुर नामक नगर पहुँचे । वहाँ के राजा सोमदेव की पुत्री सोमश्री, जृम्भक देव द्वारा वाणी के
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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