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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
प्रदर्शन किया। राजा विस्मित हो उठा । सन्निवेशवासी प्रजाजन वसुदेव के रूप, वय और बल का वर्णन करते हुए प्रशंसामुखर हो रहे थे। चित्रकला - कुशल व्यक्ति वसुदेव को अपना प्रतिच्छन्द (मॉडेल) बनाने को उत्सुक हो रहे थे । महलों की खिड़कियों में खड़ी युवतियाँ उनपर फूल और मंगलचूर्ण बिखेर रही थीं ।
राजभवन में वसुदेव का राजोचित स्वागत सम्मान किया गया। उसके बाद राजा अभग्नसेन ने अपनी रूपवती पत्नी पद्मा वसुदेव को अर्पित कर दी । विधिवत् विवाह का अनुष्ठान सम्पन्न हुआ । उसके बाद वसुदेव का साला अंशुमान् भी उनको खोजते-ढूँढ़ते वहाँ आ पहुँचा। अंशुमान् की हिण्डन - कथा सुनने के बाद उन्होंने हाथी के उड़ने से प्रारम्भ कर पद्मा से विवाह तक की सारी कथा उससे कह सुनाई। अंशुमान् का, राजा कपिल के पुत्र के रूप में राजा अभग्नसेन के पुरुषों से परिचय कराया गया । राजा अभग्नसेन ने सन्तुष्ट होकर अंशुमान् का सम्मान किया ।
जिज्ञासा करने पर वसुदेव ने अपनी पत्नी पद्मा से अपने नगर-निर्गम का वृत्तान्त कारणसहित बता दिया । तदनन्तर, वसुदेव पद्मा के साथ ललितरम्य कलाओं तथा अंशुमान् के साथ व्यायाम-कला को प्रसन्नमन से आयत्त करते हुए सुखपूर्वक दिन बिताने लगे (आठवाँ पद्मालम्भ) ।
राजा अभग्नसेन का बड़ा भाई मेघसेन था । वह अभग्नसेन को सतत उत्पीड़ित करता रहता था । इसीलिए, वह जयपुर से भागकर शालगुहा में आकर रहता था। एक दिन उसने वसुदेव से अपनी दु:खगाथा सुनाई। वसुदेव ने अपने साले अंशुमान् के सहयोग से राजा मेघसेन को पराजित कर दिया । और अन्त में, सान्धिविग्रहिक वसुदेव ने दोनों भाइयों में मेल भी करा दिया। अभग्नसेन द्वारा सम्मानित मेघसेन अपना नगर लौट गया ।
कुछ दिनों के बाद मेघसेन लौटकर आया और अपराजेय योद्धा वसुदेव से कहने लगा : “देव ! मेरी कन्या अश्वसेना आपकी सेविका बने, इसके लिए कृपा कीजिए।” वसुदेव ने कहा : “पद्मा यदि अनुमति दे, तो वही हो ।” पद्मा की अनुमति से मेघसेन ने अश्वसेना का वसुदेव के साथ पाणिग्रहण करा दिया । अश्वसेना सर्वांगसुन्दरी मधुरभाषिणी राजकन्या थी । मेघसेन ने कन्या के साथ ही प्रचुर परिचारक और विपुल धन-वैभव प्रदान किया। वसुदेव पद्मा और अश्वसेना- दोनों राजकुमारियों के साथ सुख से रहने लगे (नवाँ अश्वसेना-लम्भ) ।
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एक दिन वसुदेव ने अंशुमान् से परामर्श किया कि किसी अपूर्व जनपद का भ्रमण किया जाय । अंशुमान् ने बताया कि यहीं समीप में मलय नाम का देश है। वहाँ ललितकला प्रेमी जन रहते हैं और वह देश उपवनों और काननों की श्री सुषमा से सम्पन्न है। बस, विना किसी को सूचना दिये दोनों व्यक्ति माथा ढके हुए, विपरीत मार्ग से चुपचाप निकल गये और कुछ दूर जाने पर फिर सीधे रास्ते से चले। रास्ते की थकान मिटाने के लिए अंशुमान् किस्सा सुनाता चला । बहुत दूर निकल जाने के बाद दोनों ने एक सन्निवेश के बाहर विश्राम किया । वसुदेव ने अपने आभूषणों को छिपाकर रख लिया। उसके बाद दोनों ने विप्ररूप धरकर भद्रिलपुर सन्निवेश में प्रवेश किया। वहाँ दोनों ने अपने नाम आर्यज्येष्ठ और आर्यकनिष्ठ रख लिये । इभ्यपुत्र वीणादत्त दोनों को अपने घर ले गया और बड़े ठाट-बाट से आतिथ्य किया, फिर उसने दोनों के लिए राजमार्ग के समीप ही स्वतन्त्र आवास की व्यवस्था भी कर दी ।