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परिशिष्टः ४ 'वसुदेवहिण्डी के विशिष्ट चार्चिक स्थल १. अणुव्रत के गुण-दोष (पृ.२९४) । २. अथर्ववेद की उत्पत्ति (पृ.१५१)। ३. अनार्यवेद की उत्पत्ति (पृ.१८५) । ४. अष्टापदतीर्थ की उत्पत्ति (पृ.३०१)। ५. आर्यवेद की उत्पत्ति (पृ.१८३)। ६. कोटिशिला की उत्पत्ति (पृ.३४८)। ७. गणिका की उत्पत्ति (पृ.१०३)। ८. गीत, नृत्य, आभूषण, काम आदि की दुःखावहता (पृ.१६६)। ९. दिक्कुमारियों द्वारा आयोजित ऋषभस्वामी-जन्मोत्सव (पृ.१५९)। १०. धनुर्वेद की उत्पत्ति (पृ.२०२) । ११. नरक का स्वरूप (पृ.२७०)। १२. परलोक के अस्तित्व की सिद्धि (पृ.११५)। १३. पिप्पलाद की उत्पत्ति (पृ.१५१)। १४. पुरुषों के भेद (पृ.१०१)। १५. प्रकृति-पुरुष विचार (पृ.३६०)। १६. महावतों के स्वरूप (पृ.२६७)। १७. मांसभक्षण में गुण-दोष की चर्चा (पृ.२५९)। १८. माहणों (ब्राह्मणों) की उत्पत्ति (पृ.१८३)। १९. वनस्पति में जीवसिद्धि (पृ.२६७) । २०.विष्णुगीत की उत्पत्ति (पृ.१२८)। २१.सिद्धगण्डिका (पृ.३०१)। २२. हरिवंश की उत्पत्ति (पृ.३५३)।
'वसुदेवहिण्डी' के उपर्युक्त सभी स्थल कथाकार संघदासगणी की मौलिक चिन्तन-प्रतिभा, बहुश्रुतता और स्वीकृत प्रतिज्ञा के पल्लवन की प्रौढता के साथ ही उनकी कथासृष्टि की विस्मयकारी निपुणता के अन्यत्रदुर्लभ रचना-प्रकल्प हैं।