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कतिपय विशिष्ट विवेचनीय शब्द
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जो विवरणमूलक शब्दानुक्रमणी उपस्थित की गई है, उसके लिए यथानिर्दिष्ट कोशों का आधार लिया गया है : 'पाइयसद्दमहण्णवो'; 'जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश', 'पालि - हिन्दी - कोश'; 'संस्कृत-हिन्दीकोश’'; 'बृहत् हिन्दी-कोश'; 'देशीनाममाला'; 'अमरकोश' आदि-आदि ।
इन कोशों के अतिरिक्त, मूल कथाप्रसंग के आधार पर भी यथाप्रयुक्त शब्दों के अर्थतत्त्व तक पहुँचने का प्रयास किया गया है । आशा है, यथाप्रस्तुत शब्द-विवेचन से भावी शोधकों के लिए यत्किंचित् दिशा-निर्देश अवश्य उपलब्ध होगा । कहना न होगा कि प्राकृत भाषा और साहित्य के शोध - अनुशीलन की दृष्टि से 'वसुदेवहिण्डी' का महत्त्व निर्विवाद है। इसलिए, इस महान् ग्रन्थ की 'अत्थग्ध' शब्द-महोदधि में जो जितना ही गहरा पैठेगा, उसे उतने ही 'महग्घ' अर्थरत्न की प्राप्ति होगी । वस्तुतः 'वसुदेवहिण्डी' प्राकृत भाषा और साहित्य के 'अन्तर्विषयी शोध' के लिए यूथबद्ध मनीषियों के प्रातिभ श्रम को आमन्त्रित करती है ।