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________________ कतिपय विशिष्ट विवेचनीय शब्द ५८७ पराभग्गो (९८.२९-३०) : पराभग्न: (सं.); भाग गया; पराजित हो गया। .. परिधम्मिक (२७१.७) : प्रतिधार्मिक (सं.); विपरीत धर्मवाला; प्रतिपक्षी। परियत्ति (६९.१०) : पालि में इस शब्द का अर्थ है; धर्मग्रन्थों के अध्ययन की उपलब्धि । संघदासगणी ने संकेत की उपलब्धि के अर्थ में इसका प्रयोग किया है। मूलपाठ है : ‘पडागपरियत्तिपरायणो' = पताका के संकेत की उपलब्धि के लिए तत्पर । सं. 'पर्याप्ति' के समानान्तर इस शब्द की विवेचना सम्भव है। परिसाविया (२९५.१३) : परिस्राविता (सं.); यों, ‘परिस्राविता' का सामान्य अर्थ होगा : निचोड़ी गई; चुलाई गई; टपकाई गई; पर कथाकार ने 'तुला परिसाविया' का प्रयोग सोद्देश्य किया है। न्याय के लिए तुला प्रस्तुत की गई है। 'प्राकृतशब्दमहार्णव' के अनुसार, 'परिसाविया' का एक भिन्न अर्थ भी निकलता है : 'गुह्य बात प्रकट कर दी गई। प्राचीन न्यायपद्धति में तुला-परीक्षा से छिपे हुए सत्य को प्रकट किया जाता था। पवित्तीतेण (२१६.७) : प्रवृत्त्यागमनेन (सं.); समाचार आने पर; समाचार मिलने से। पविद्ध : पब्विद्ध (२७७.६) [देशी] प्रेरित। 'पविद्धं पेरियए'।– 'देशीनाममाला' (६.११)। पवियव्व (३५८.२५) : प्लवितव्य (सं.); [प्लव् + तव्यत् ] तैरने योग्य या तैरने का उपकरण । मूल प्रयोग 'पवियव्वजोग्गाणि' में 'पवियव्व' की स्वयं अर्थयोग्यता के बावजूद 'जोग्गाणि' जोड़कर कथाकार ने प्रयोग-वैचित्र्य प्रदर्शित किया है। पवियार (९७.२६) : प्रविचार (सं.); काम-मैथुन या रतिकार्य। पहगर : पहयर (२४८.५) : [देशी ] निकर; समूह; यूथ । 'पग्गेज्जपहयरा णियरे।' 'देशीनाममाला' (६.१५)। पाउवगमन (१७०.३०) : पादपोपगमन या प्रायोपगमन (सं.); अनशन-विशेष द्वारा मरण को अंगीकृत करना; अनशन द्वारा मरने की तैयारी करना; आमरण अनशन । इसे 'प्रायोपवेशन' भी कहते हैं। वानप्रस्थ और संन्यासाश्रम का तपोविशेष । पाडय (७४.२९) : पाटक (सं.), बाड़ा; मुहल्ला। पाढ (३०६.७) : पाट-पाटक (सं.); मुहल्ला; टोला; टोल। पायकेसरिया (१९.२१) : पात्रकेसरिका (सं.), जैन साधुओं का एक उपकरण; पात्र-प्रमार्जन का वस्त्र। पारद्ध (१८२.३) : [ देशी ] पीडित । 'देशीनाममाला' में पूर्वकृत कर्म का परिणाम, आखेटक (शिकारी) और पीडित के अर्थ में इस शब्द का उल्लेख किया गया है : 'पुवकयकम्मपरिणइआहेडयपीडिएसु पारद्धं' (६.७७)। मूलपाठ है : 'ततो जेहिं गाओ पारद्धाओ।' तब उन्होंने (दण्डधारी गोपों ने) गायों को पीडित किया (पीट करके भगा दिया)।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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