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________________ वसुदेव की अट्ठाईस पलियों की विवरणी ५७३ में प्राय: प्राप्त होता है, माना जाय, तो प्रा. 'अयोणतं' को संस्कृत 'अवनत' का प्रतिरूप सहज ही कहा जा सकता है। अण्णयेणं (२९०.२५) : अन्वयेन (सं.), परम्परागत रूप से, वंशानुक्रम से। अण्णिज्जमाणी (१३२.२५) : अन्वीयमाना (सं.); अनुसरण की जाती हुई। मूलपाठ : 'अण्णिज्जमाणी इव लज्जाए' = लज्जा से अनुगत, अर्थात्, लज्जा जिसका अनुगमन कर रही है। लाजवन्ती गन्धर्वदत्ता के उपमामूलक चाक्षुष बिम्ब का यह उत्तम उदाहरण है। अतीव (९९.११) : [क्रिया] अत्येतु (सं.); भागो; निकलो। अत्तगमणं (४०.२४) : आत्मगमनं (सं.); आत्मबोध; आत्मज्ञान । प्रसंगानुसार इस शब्द की व्युत्पत्ति का एक और प्रकार सम्भव है: अत्तग (आत्मक) + मणं (मनोनुसार) = अपने मन (ज्ञान) के अनुसार। अत्यग्ध (१४८.११): [देशी] अथाह । 'देशीनाममाला' (हेमचन्द्र) में अथाह के लिए 'अत्थग्घ' या 'अत्थघ' और 'अत्थाह,' इन दो पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख हुआ है (१.५४)। अत्यसत्य (४५.२५) : अस्त्रशास्त्र (सं.), कतिपय विद्वानों ने इस शब्द का संस्कृत रूपान्तर 'अर्थशास्त्र' किया है। किन्तु, प्रसंगानुसार स्पष्ट है कि कथाकार का अभिप्राय 'अस्त्रशास्त्र', अर्थात् अस्त्रविद्या या धनुर्विद्या से सम्बद्ध शास्त्र से है। अत्याणिवेलासु (१६३.२५) : आस्थानवेलासु (सं.); सभा के समय । आस्थान = सभा, सभाभूमि या सभामण्डप भी। अट्ठ (२७.१०) : अर्धष्ट (सं.); साढ़े सात (सात और आठवें का आधा)। यह प्राकृत की अपनी संख्यावक्रताजन्य प्रायोगिक विशेषता है । जैसे: 'ततो नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य राइंदियाणं वितीक्कंताणं जातो (मूलपाठ)।' अर्थात्, 'नौ महीने पूरे होने के बाद साढ़े सात दिन-रात बीतने पर (धम्मिल्ल) उत्पन्न हुआ।' जैन विश्वास के अनुसार, किसी सत्पुरुष के जन्म की प्राय: यही अवधि निश्चित होती है। अर्द्धमागधी में 'अट्ट' का प्रयोग-प्राचुर्य उपलब्ध होता है। अद्धोरुय : अड्ढोरुय (६७.२) : अोरुक (सं.), वस्त्र-विशेष; आधे घुटने तक का हाफ पैण्टनुमा परिधान (विशेष विवरण प्रस्तुत शोधग्रन्थ के सांस्कृतिक जीवन प्रकरण के वस्त्रवर्णन-प्रसंग में द्रष्टव्य)। अपज्जत्तीखम (१४०.३) : अ + पर्याप्तिक्षम (सं.); पूर्णप्राप्ति के अयोग्य (अयोग्यतासूचक नञ् समास)। मूल कथाप्रसंग है कि विद्याधर ने आलोकरमणीय पुलिनखण्ड को रति की पूर्णप्राप्ति के योग्य न मानकर, उसे छोड़ विद्याधरी के साथ आगे बढ़ गया।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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