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५५२ ... वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा ___ अर्थात्, वहाँ बहुत सारे भूत आये। वे अपने हाथों में तलवार, त्रिशूल, भाला, बाण, मुद्गर
और फरसा लिये हुए थे; शरीर में उन्होंने भस्म लपेट रखा था; वे मृगचर्म पहने हुए थे; उनके केश भूरे और बिखरे हुए थे और काले लम्बे साँप का उत्तरासंग धारण किये हुए थे। उन्होंने गले में अजगर लपेट रखा था; उनके पेट, जाँघ और मुँह बड़े विशाल थे, उन्होंने गोह, चूहा, नेवला और गिरगिट के कर्णफूल पहन रखे थे तथा बार-बार अनेक प्रकार से रूप बदलते थे। (मेघरथ और उसकी रानी प्रियमित्रा के आगे) उन भूतों ने गीत और वाद्य के गम्भीर स्वर के साथ नृत्य किया। ___ यह प्रसंग हास्य, बीभत्स, भयानक, रौद्र, शान्त, शृंगार और अद्भुत रसों का समेकित बिम्ब प्रस्तुत करता है। यहाँ सफल बिम्बग्रहण और बिम्बविधान के लिए कथाकार ने भयानक सौन्दर्य की अद्भुत कल्पना की है। यद्यपि कथाकार द्वारा निर्मित यह बिम्ब केवल शब्दाश्रित है। ___ इस प्रकार, कथाकार द्वारा अनेक शब्दाश्रित और भावाश्रित बिम्बों का विधान किया गया है, जिनमें भाषा और भाव दोनों पक्षों का सार्थक समावेश हुआ है। 'वसुदेवहिण्डी' में अनेक ऐसे स्थल सुलभ हैं, जहाँ कथाकार की कल्पना मूर्त रूप धारण करके, उपमा और रूपकों के माध्यम से निर्मित होकर भी स्वतन्त्र अस्तित्व के साथ बिम्बों की सृष्टि करने में समर्थ हुई है। बहुधा वस्तु-विशेष के प्रति ऐन्द्रिय आकर्षण के कारण ही कथाकार बिम्ब-विधान की ओर प्रेरित हुआ है। 'वसुदेवहिण्डी' में प्राप्य कतिपय मोहक बिम्बविधायक प्रयोग यहाँ समेकित रूप में द्रष्टव्य हैं :
"बिब्बोय-णयणसंचारणजुत्त' (पृ. २८, पं. २१) 'वायवसपकंपमाणनच्चंत-पल्लवग्गहत्थस्स असोगवरपायवस्स' (३५.१४), 'भमर-महुकरिकुलोवगिज्जंतमहुलउवसद्दकुहरस्स रत्तासोयवरपायवस्स' (३७.७-८), "मिउ-विसय-सुगंधिनीहारिणा सव्वकुसुमाहिवासिएणं केसहत्थएणं सोभमाणेणं' (३७.१८-१९); 'ईसीसिहसियदीसंतरूवलट्ठसुद्धदंतपंतीए' (३७.२३), 'नवहरियपल्लवबहुसाहसीअलच्छायस्स सहयारपायवस्स' (४०.५); रहतुंडनिविट्ठा कुप्पासयपिहियकाया तोत्तयगहियवावडग्गहत्था' (५३.५); ‘कयवायामलघुसरीरो विहगो विव लीलाए आरूढो' (६७.३); 'जहणवित्थारेण भागीरहिपुलिणदेसं' (७९.२०), 'दिवायरकिरणालिंगियमलिणमणहरमुहं' (९१.३०), 'फलरसपुट्टपरपुट्ठमहुरभासिणीओ' (१२१.२५), 'सवणमणसुभगमहुरभणिया' (१२३.१२-१३), 'सारइयबलाहगसणाहसाणुदेसो इव मंदरो,' 'कडगकेयूरभूसियभुमयाजुयलो य इंदायुध-चिंधित इव गगणदेसो', 'पालंबोचूलरइयमुत्ताविहाणो य जोइसमालाधरो इव तिरियलोओ' (१३०.५-६); 'खारसलिलपंडरंसरीरो' (१४६.१४), 'सिरीसकुसुमसुकुमालसरीरा' (१९८.१), 'उवणीयं भोयणं कणगरययभायणेण सुकुसलोपायसिद्धं सीहकेसर-कुवलयफालफलमोदकं,' 'मिदु-विसद-सगसिद्धो य कलमोयणो', 'जीहापसायकराणि ठाणकाणि य विविहसंभारसिद्धाणि' (२१.८२३, २४, २५, २६), 'कुंडलजुयलालंकियवयणसयपत्तं चक्कजुयलपरिग्गहियं पिव सयवत्तं' (२४६.२५), 'मणोसिलाधाउरंजियअंजणगिरिसिहरसरिसस्स' (२५१.३), 'गावीओ रूविणीओ वण्ण-रूव-संठाण-सिंगाऽऽगितिहिं कल्लाणियाओ' (२९७.७-८), 'विउलाए रयणमंडियाए सहाए बत्तीसरायसहस्सपरिवुडो सीसरक्खिय-पुरोहिय-मंति-महामंतिसमग्गो सीहासणोवविट्ठो' (३३०.१४-१५), 'कणयमयसहस्सपत्तपइट्ठियं तरुणरविमंडलनिभं धम्मचक्कं' (३४१.२३); (युद्धभूमि का रौद्र और वीर रस के माध्यम से निर्मित बिम्ब:) 'खत्तियबलस्स य नायरस्स य संपलग्गं जुद्धं विविहाऽऽउहभरियरहवराबद्ध