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________________ वसुदेवहिण्डी : भाषिक और साहित्यिक तत्त्व ५४३ शक्ति है। इस कल्पनाशक्ति द्वारा कलाकार पूर्वप्रत्यक्षित वस्तुओं अथवा पूर्वानुभूत प्रत्ययों या भावस्थितियों का पुनर्भावन करता है। दूसरे अर्थ में कल्पना एक पुनरुत्पादक या पुन: प्रत्यक्षाधायक शक्ति है, जिसके द्वारा कलाकार अपने अनुभव या अनुमान से प्राप्त सामग्री का नवीन संयोजन, क्रम या रूप-विधान प्रस्तुत करता है। इसी संकुल कल्पना को, सामान्यत: कला-आलोचना में मूर्तविधायिनी या सर्जनात्मक शक्ति ('प्लास्टिक ऑव क्रियेटिव पावर') कहते हैं। कलाचेता कथाकार संघदासगणी ने अपनी कथा-रचना में अपने परम्परागत अनुभव और तदाधृत अनुमान के आधार पर प्राप्त कथा-सामग्री का नवीन संयोजन और रूपविधान प्रस्तुत किया है और इस क्रम में उन्होंने अपनी उदात्त कल्पनाशक्ति या बिम्बविधायिनी शक्ति का भूरिश: उपयोग किया है। कुल मिलाकर, कथाकार की कल्पना और चैतन्य के मिश्रण से प्रसूत कथाकृति 'वसुदेवहिण्डी' दृष्टि, ध्वनि, स्पर्श, घाण, क्रिया और रस की मनोविज्ञान-सम्मत कल्पना का अद्भुत समाहार के रूप में उपन्यस्त हुआ है। पूर्वभवों से सम्बद्ध स्मृति-कथाएँ कथाकार की दृष्टि-कल्पना को संकेतित करती हैं। इन कथाओं में कलात्मक प्रत्यभिज्ञान की प्रचुर क्षमता है। 'वसुदेवहिण्डी' के कतिपय काल्पनिक प्रसंगों में ध्वनि-कल्पना के भी भव्य आसंग मिलते हैं। उदाहरणस्वरूप, गन्धर्वदत्तालम्भ में संगीत की और विष्णुकुमारचरित में विष्णुगीत द्वारा स्तुति की, इसी प्रकार वेदश्यामपुर में वेदध्वनि की तथा प्रियंगुसुन्दरीलम्भ में नाट्यसंगीत की स्वरलहरी की कल्पना की पुष्कल सहायता कथाकार ने ली है। इस प्रकार की ध्वनि-कल्पना, श्रुत स्वर-लहरी को आनुपूर्वी रूप में आवृत करने की क्षमता से सम्पन्न होती है। यह भी विदित है कि काव्यकला के ध्वनि-प्रतीक भी इसी ध्वनि-कल्पना के उपजीवी होते हैं। स्पर्श-कल्पना के सहारे स्पर्श-विषयक बिम्बों का विधान सहज हो जाता है। यों तो, 'वसुदेवहिण्डी' में स्पर्श-कल्पना के अनेक आयाम उद्भावित हुए हैं, किन्तु दो-तीन प्रतिनिधि स्पर्श-कल्पनाएँ तो पार्यन्तिक महत्त्व रखती हैं। प्रथम, मधु और चन्द्राभा की कथा की स्पर्श-कल्पना को लें। कथा है कि आमलकल्पा नगरी का राजा भीम गजपुर के राजा मधु की आज्ञा का पालन नहीं करता था। एक दिन मधु ने भीम को अधीनस्थ करने के लिए यात्रा की । इसी क्रम में वह वटपुर पहुँचा। वहाँ राजा कनकरथ ने उसका बड़ा सम्मान किया और उसे अपने घर ले आया। स्वयं रानी चन्द्राभा ने सोने की झारी से जल उड़ेलकर मधु के पैर धोये । राजा मधु रानी चन्द्राभा के रूप पर रीझ गया और उसके मृदुल करों के स्पर्श से कामाभिभूत हो उठा। ('ततो महू तीसे रूवे पाणिपल्लवफासे य रज्जमाणो वम्महवत्तव्वयमुपगतो; पीठिका : पृ. ९०)। द्वितीय, चारुदत्त और वसन्ततिलका के स्पर्श की कल्पना को लें। मधु (मद्य) के प्रभाव से भ्रान्तदृष्टि चारुदत्त को वसन्ततिलका गणिका इन्द्र की अप्सरा के समान प्रतीत होती थी। चारुदत्त जब चलने लगा, तब मधु के प्रभाव से उसके पैर लड़खड़ाने लगे। गणिका ने अपने दायें हाथ से चारुदत्त की भुजाओं और माथे को सहारा दिया। लड़खड़ाता हुआ चारुदत्त गणिका के गले से लग गया। शरीर के स्पर्श से ही चारुदत्त को अनभव हआ कि सहारा देनेवाली स्त्री निश्चय ही इन्द्र की अप्सरा है। फलत: चारुदत्त में कामभाव जागरित हो आया और उसका सारा शरीर रोमांचित हो उठा । ("मया वि य खलंतगतिणा कंठे अवलंबिया, गत्तफरिसेण य 'वासवअच्छरा एसा धुव' त्ति संजायमयणो कंटयियसव्वंगो."; गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १४३) ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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