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________________ ५३६ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा अभिव्यक्ति की वक्रता, वचोभंगी का चमत्कार, भावों की विच्छित्ति, अलंकारों की शोभा, रस का परिपाक, रमणीय कल्पना, हृदयावर्जक बिम्ब, रम्य रुचिर प्रतीक आदि प्रमुख हैं। कहना न होगा कि 'वसुदेवहिण्डी' में इन समस्त तत्त्वों का यथायथ विनियोग हुआ है । संक्षेप में कहें तो, 'वसुदेवहिण्डी' रूप, शैली और अभिव्यक्ति—कला - चेतना की इन तीनों व्यावर्त्तक विशेषताओं से विमण्डित है। इसलिए, कलाशास्त्र की विस्तृत पटभूमि पर व्यापक तात्त्विक विवेचन के अनेक आयाम 'वसुदेवहिण्डी' में निहित हैं, जिनका अध्ययन एक स्वतन्त्र प्रबन्ध का विषय है । यहाँ तद्विषयक यत्किंचित् प्रकाश डालकर ही परितोष कर लेना अभीष्ट है। 'वसुदेवहिण्डी' की कथाओं में पात्र - पात्रियों और उनके कार्यव्यापारों को चित्रात्मक रूप देने का श्लाघ्य प्रयत्न किया गया है। कलाचेता संघदासगणी ने लोक-मर्यादा, वेश-भूषा, आभूषणपरिच्छद, संगीत-वाद्य, अस्त्र-शस्त्र, खान-पान आदि कलात्मक एवं सांस्कृतिक उपकरणों एवं शब्दशक्ति, रस, रीति, गुण, अलंकार आदि साहित्यिक साधनों का अपने ग्रन्थ में यथास्थान बड़ी समीचीनता से विनिवेश किया है। कला के स्वरूप को सांगोपांग जानने के लिए संघदासगणी के प्राकृत-कथा-साहित्य से कलाभूयिष्ठ भावों और शब्दों का दोहन हिन्दी - साहित्य के लिए अतिशय समृद्धिकारक है | कामदुघा कथाकृति 'वसुदेवहिण्डी' से कला का मार्मिक ज्ञान और साहित्यिक अध्ययन, दोनों की सारस्वत तृषा सहज ही मिटाई जा सकती है। क्योंकि, इस कथाग्रन्थ में साहित्य और कला, दोनों के योजक रसतत्त्व की समान भाव से उपलब्धि होती है । संघदासगणी ने लोकजीवन की उमंग से उद्भूत साहित्य और कला के सौन्दर्यमूलक तत्त्वों की एक साथ अवतारणा की है। इसलिए, साहित्य और कला युगपत् अध्ययन से ही 'वसुदेवहिण्डी' का समग्र रूप से परिचय सम्भव है 1 प्राचीन आचार्यों की दृष्टि से साहित्य और कला का नेदिष्ठ और तात्त्विक अन्तःसम्बन्ध है । इसीलिए, संघदासगणी के कथा-साहित्य में कला - चेतना का अन्तर्भाव उपलब्ध होता है । तात्त्विक अन्त: सम्बन्ध के कारण ही साहित्य और कला में पर्याप्त निकटता प्रतीत होती है । संघदासगणी की कथा में, साहित्य-चेतना के समान ही कला-चेतना की भी पर्याप्त मौलिकता है । यही कारण है कि उनके कथा-साहित्य में ललितकलाओं का सौन्दर्य-बोध छिपा हुआ है। साहित्यिक और कलात्मक सौन्दर्य-विवर्द्धन ही 'वसुदेवहिण्डी' की कथाओं का मूल उद्देश्य है। वास्तविकता यह है कि संघदासगणी की कथाओं में एक कलामर्मज्ञ कथाकार की सृष्टि चेतना का मुग्ध संवेग एवं समग्र मानव चेतना तक आशु संक्रमणकारी अशेष सामर्थ्य परिलक्षित होता है और यही कारण है कि उस कथाकार की अनुभूतियों में सुरक्षित अमूर्त कला कथा के माध्यम से अनुपम भव्यता के साथ मूर्त हो उठी है । सौन्दर्य : अभिनवगुप्त ने सौन्दर्यानुभूति को 'वीतविघ्ना प्रतीतिः' कहा है, जिसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अन्तसत्ता की तदाकार - परिणति ('इम्पैथी) के रूप में स्वीकार किया है। संघदासगणी की कथा में भी यही विशेषता है, अर्थात् उनकी कथा में सौन्दर्य की निर्विघ्न प्रतीति होती है, इसीलिए कथाओं को पढ़ते समय उनके पात्र - पात्रियों के साथ पाठकों की अन्तः सत्ता की तदाकार- परिणति हो जाती है। सामान्यतः 'वसुदेवहिण्डी' की भाषा-शैली इतनी प्रांजल है कि अर्थ
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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