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________________ वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप इस प्रकार, इन दोनों कथाग्रन्थों में, जैसा कहा जा चुका है, विलक्षण कथासाम्य अनेकत्र परिलक्षित होता है। जैसे : 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के 'यौवराज्याभिषेक' नामक सप्तम सर्ग की कथा से 'वसुदेवहिण्डी' की पीठिका में उल्लिखित बुद्धिसेन का कथाप्रसंग तुलनीय है। पुनः इसी प्रकार, 'वसुहेवहिण्डी' की पीठिका के अन्तर्गत सुहिरण्या की कथा से 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के 'मृगयाविहार' नामक अष्टम सर्ग की कथा की तुलना की जा सकती है। पुनः जैसा पहले कहा गया है, 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के 'पुलिनदर्शन' नामक नवम सर्ग से 'वसुदेवहिण्डी' के गन्धर्वदत्तालम्भ की चारुदत्त की आत्मकथा का साम्य द्रष्टव्य है । 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के 'रथ्यासंलाप' नामक दशम सर्ग की कायस्थ-कथा के सन्दर्भ से भी 'वसुदेवहिण्डी' के पीठिका-भाग की प्रद्युम्न-कथा के पुरुषभेद-प्रसंग का अपूर्व सादृश्य है। फिर, वसुदेवहिण्डी' के पीठिका-भाग की बुद्धिसेन और भोगमालिनी के कथाप्रसंग से 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के उक्त दशम सर्ग की गोमुख और गणिका की कथा की समानता ध्यातव्य है। दशम सर्ग की ही कथा से 'वसुदेवहिण्डी' की पीठिका में उल्लिखित गणिकोत्पत्ति का प्रसंग और सुहिरण्या की कथा का बिम्बानुबिम्ब-भाव स्पष्ट है । इसके अतिरिक्त, 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के 'वेगवती-दर्शन' नामक चौदहवें सर्ग में अंकित अकामवती स्त्री के साथ बलात्कार करने से सिर के सौ टुकड़े हो जानेवाले अभिशाप से सम्बद्ध मानसवेग की कथा का प्रतिबिम्ब 'वसुदेवहिण्डी' के 'प्रियंगुसुन्दरीलम्भ' की ऋषिदत्ता-कथा में परिलक्षित होता है और पुनः 'वेगवती-लाभ' नामक पन्द्रहवें सर्ग की कथा से 'वसुदेवहिण्डी' के 'केतुमतीलम्भ' की वेगवती-कथा से अद्भुत साम्य है। यों, 'वसुदेवहिण्डी' में 'वेगवतीलम्भ' नाम से दो स्वतन्त्रलम्भ (सं. १३ और १५) भी हैं । 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के 'गन्धर्वदत्ता-लाभ' और 'गन्धर्वदत्ता-विवाह' नामक १६वें और १७वें सर्गों में प्राप्त कथा का 'वसुदेवहिण्डी' के 'गन्धर्वदत्तालम्भ' की कथा से विलक्षण साम्य की चर्चा ऊपर प्रकारान्तर से की जा चुकी है। डॉ. जगदीशचन्द्र जैन ने भी 'वसुदेवहिण्डी' के स्वसम्पादित अंगरेजी-संस्करण ('दि वसुदेवहिण्डी : एन् ऑथेण्टिक जैन वर्सन ऑव दि बृहत्कथा') में 'वसुदेवहिण्डी' और 'बृहत्क थाश्लोकसंग्रह' का विशद रूप से तुलनात्मक अध्ययन (पृ. २८-१५५) किया है, साथ ही उन्होंने दोनों के कथानकों की समानता ही नहीं, दोनों की शाब्दिक अभिव्यक्ति की आश्चर्यकारक सदृशता का भी दिग्दर्शन बड़ी विदग्धता के साथ किया है और समस्तम्भ रूप में 'श्यामलीलम्भ', 'गन्धर्वदत्तालम्भ', 'नीलयशालम्भ', 'सोमश्रीलम्भ', 'पुण्ड्रालम्भ' और 'वेगवतीलम्भ' के कतिपय स्थलों के आश्चर्यकारी साम्यमूलक अंश को पुंखानुपुख उपस्थित करके शोधश्रम का एक नया प्रतिमान प्रस्तुत किया है। उक्त दोनों कथाग्रन्थों में इस प्रकार से छोटी-से-छोटी बातों और वर्णन की कलात्मकता में. रोचक कथासादृश्य को देखते हुए यह अनुमान सहज ही किया जा सकता है कि बुधस्वामी और संघदासगणी के समक्ष गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' का मूलरूप न्यूनाधिक अन्तर के साथ विद्यमान था। इस सन्दर्भ में ऑल्सडोर्फ का यह ध्यातव्य निष्कर्ष है कि 'वसुदेवहिण्डी' का अन्तिम कथाभाग प्राचीन 'बृहत्कथा' का विशिष्ट रसपेशल लाक्षणिक निदर्शन प्रस्तुत करता है और सर्वांशतः अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि मूल 'बृहत्कथा' की लाक्षणिकता एवं गुणाढ्य की काव्यशक्ति अपने अधिकांश जीवन्त रूप में 'वसुदेवहिण्डी' में विद्यमान है (द्र. पूर्ववत् : 'ए न्यू वर्सन ऑव दि लॉस्ट बृहत्कथा ऑव गुणाढ्य)।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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