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वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप
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पद्मावती की सुविदित कथा थी। वासवदत्ता का पुत्र नरवाहनदत्त जब युवा राजकुमार की अवस्था को प्राप्त हुआ, तब उसका गणिकापुत्री मदनमंचुका ('बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' में 'मदनमंजुका' ) से प्रेम हो गया। उस राजकुमार ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध उससे विवाह कर लिया। एक विद्याधर राजा मदनमंचुका को हर ले गया। मदनमंचुका को खोजते हुए नरवाहनदत्त ने विद्याधर-लोक और मनुष्य-लोक में नये-नये पराक्रम किये। दीर्घ पराक्रम के बाद मदनमंचुका से उसका मिलन हुआ। राजकुमार नरवाहनदत्त स्वयं विद्याधर-चक्रवर्ती बना और मदनमंचुका उसकी प्रधानमहिषी (पटरानी) बनी। नरवाहनदत्त अपने प्रत्येक पराक्रम के बाद अन्त में एक सुन्दरी से विवाह करता है । इस प्रकार के प्रत्येक पराक्रम की कथा के अन्त को गुणाढ्य ने 'लम्भ' की संज्ञा दी और इसी पद्धति पर नरवाहनदत्त की कथा वेगवती-लम्भ, अजिनवती-लम्भ, प्रियदर्शना-लम्भ इत्यादि प्रकरणों में विभक्त हुई।
जैन परम्परा के अनुसार, 'वसुदेवहिण्डी' में श्रीकृष्ण की प्राचीन कथा की आयोजना इस प्रकार हुई : रूपवान् एवं प्रचण्ड पराक्रमी वसुदेव ने, अपने बड़े भाई से रुष्ट होकर घर छोड़ दिया और वह देश-देशान्तर का परिभ्रमण (हिण्डन) करने लगे। इसी क्रम में, उन्होंने नरवाहनदत्त की भाँति विविध पराक्रम प्रदर्शित किये और अनेक पलियाँ प्राप्त की । अन्तिम पत्नी के रूप में उन्होंने देवकी को प्राप्त किया। इसके पूर्व रोहिणी पत्नी की प्राप्ति के क्रम में स्वयंवर में ही अकस्मात् वसुदेव का अपने बड़े भाई समुद्रविजय से मिलन हो गया और वह अपने कुटुम्ब के साथ मिलकर पूर्ववत् रहने लगे। मदनमंचुका का प्रसंग इस कथा में छोड़ दिया गया है क्योंकि स्वभावतः कृष्ण की कथा के प्रसंग में उसकी संगति न थी। कथा की मूलभूत पात्री मदनमंचुका के प्रसंग को परिवर्तित कर उसके स्थान पर गणिकापुत्री सुहिरण्या और राजकन्या सोमश्री का प्रणय-प्रसंग श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ जोड़ दिया गया है । इस प्रकार, 'बृहत्कथा' के इस प्राकृत जैन रूपान्तर की प्राप्ति से मूल 'बृहत्कथा' की वस्तु
और उसकी आयोजना की कई एक अप्रत्याशित घटनाओं तथा विलुप्त मूल ग्रन्थ के स्वरूप के विषय में कई महत्त्वपूर्ण तथ्यों का उद्भावन होता है।
'वसुदेवहिण्डी' और 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' में विलक्षण कथासाम्य :
बुधस्वामी के 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के रूप में 'बृहत्कथा' का जो नैपाली नव्योद्भावन उपलब्ध हुआ है, उसके अनेक कथाप्रसंगों का 'वसुदेवहिण्डी' से साम्य है। निश्चय ही, कश्मीरी नव्योद्भावनों की अपेक्षा नैपाली नव्योद्भावन मूलकथा के यथार्थ चित्र को प्रतीकित करता है। उदाहरणार्थ, 'वसुदेवहिण्डी' की गणिकापुत्री सुहिरण्या की भाँति 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' की मदनमंजुका भी एक वारांगना की पुत्री है, किन्तु, कश्मीरी नव्योद्भावनों में मदनमंचुका को एक बौद्धराजा की दौहित्री के रूप में दरसाया गया है। 'कथासरित्सागर' तथा 'बृहत्कथामंजरी' में मदनमंचुका के नाना कलिंगदत्त को भगवान् बुद्ध का भक्त कहा गया है, जिसकी सारी प्रजा जैन (जिनभक्त) थी। सोमदेव की दार्शनिक आर्हत भावना स्पष्ट ही 'कथासरित्सागर' पर 'वसुदेवहिण्डी' के प्रभाव
१. तस्यां कलिङ्गदत्ताख्यो राजा परमसौगतः ।
अभूतारावरस्फीतजिनभक्ताखिलप्रजाः ॥ तदहिंसाप्रधानेऽस्मिन्वत्स मोशप्रदायिनि । दर्शनेऽतिरतिश्चेन्मे तदधर्मो ममात्र कः ॥ -कथासरित्सागर, ६.१.१२ और २५