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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा विदर्भ-जनपद की राजधानी कुण्डिनिपुर थी, जिसे हरिवंशियों ने ही बसाया था । यहाँ के राजा का नाम भीष्मक था, जिसकी परम रूपवती पुत्री रुक्मिणी का कृष्ण ने हरण कर लिया था । राजा भीष्मक का पुत्र रुक्मी धनुर्वेद में पारंगत था । कृष्ण ने जब उसकी बहन रुक्मिणी का हरण कर लिया था, तब उसने प्रतिज्ञा की थी कि बहन को मुक्त किये विना कुण्डिनिपुर नहीं लौटूंगा । किन्तु कृष्ण ने उसे युद्ध में पराजित कर उसका दायाँ अँगूठा काट लिया । इस प्रकार उसकी सारी धनुर्विद्या विफल हो गई । प्रतिज्ञानुसार रुक्मी कुण्डिनिपुर नहीं लौटा, अपितु एक स्वतन्त्र भोजकट नगर बसाकर वहीं रहने लगा। ४८० कथाकार के अनुसार, कोंकण - विषय (जनपद) की राजधानी शूर्पारक थी। वहाँ के निवासी काश्यप नामक काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण के चरित्र चित्रण से ऐसा प्रतीत होता है कि कोंकणी ब्राह्मण षट्कर्म (अध्ययन-अध्यापन, यजनयाजन एवं दान- प्रतिग्रह) में निरत रहते थे और उञ्छवृत्ति (खेत में गिरे अन्नकण को चुनकर उदरपूर्ति करना) से जीवन-यापन करते थे। ये ब्राह्मण जैन साधु के प्रति अगाध भक्ति रखते थे । काश्यप के घर जब मासोपवासी एक साधु आया था, तब उसने उसे ब्राह्मणों के लिए उपकल्पित भोजन से श्रद्धापूर्वक पारण कराया था। फलतः उस (काश्यप ब्राह्मण) के घर में पंचदिव्य उत्पन्न हुआ था। इतना ही नहीं, साधु को पारण कराने के फलस्वरूप, उसे अगले जन्म में भी मनुष्य-योनि की ही आयु प्राप्त हुई । कथाकार ने कामरूप - जनपद का भी वर्णन किया है। चम्पा के राजा कपिल ने अपने महाश्वपति वसुपालित को कामरूप में अपना दूत नियुक्त किया था। इसी क्रम में वसुपालित ने अपनी रूपवती पुत्री वनमाला, कामरूप के राजा सुरदेव को अर्पित कर दी थी । संयोगवश, राजा मर गया और वनमाला कामरूप से आकर चम्पा स्थित अपने घर वेदश्यामपुर में रहने लगी। वसुदेव जब भ्रमण करते हुए वेदश्यामपुर पहुँचे थे, तब वह उन्हें अपना देवर सहदेव मानकर, उनके गले से लगकर खूब रोई थी और अन्य लोगों को भी अपने देवर के रूप में ही उनका परिचय देकर उन्हें अपने घर ले आई थी, जहाँ उसने उनके लिए प्रीतिपूर्वक स्नान- भोजन की व्यवस्था कराई थी । कथाकार ने स्पष्ट किया है कि वसुदेव वनमाला के इस नाटक को समझ गये थे, किन्तु उन्हें तो यायावर स्थिति में कहीं भी अनुकूल आश्रय की अपेक्षा थी, इसलिए तत्काल वनमाला के सरस सान्निध्य में ही रहना उन्होंने नीतिसंगत समझा। इस वर्णन से कामरूप में मोहन-मन्त्र का प्रयोग करनेवाली स्त्रियों के रहने की लोकविश्रुत किंवदन्ती की भी व्यंजना होती है। कथाकार ने श्रावस्ती को कहीं जनपद कहा है, कहीं नगरी । वास्तु की दृष्टि से श्रावस्ती नगरी सुप्रशस्तथी ('अथ सुप्पसत्य-वत्थुनिवेसा सावत्थी नगरी' बन्धुमतीलम्भ: पृ. २६५) । और, श्रावस्ती जनपद के निकट ही उत्तर में सभी जनपदों में प्रमुख कोसल- जनपद था ( 'सावत्थी जनवयस्स उत्तरे दिसाभाए अणंतरिओ कोसला नामं जणवयो सव्वजणवयष्पहाणो; प्रियंगुसुन्दरीलम्भ: पृ. २८३) । यहाँ का राजा जितशत्रु था । वसुदेव की पत्नी बन्धुमती, श्रावस्ती नगरी के ही कामदेव सेठ की बेटी थी । श्रावस्ती का चौक उस युग में बड़ा मशहूर था। उस चौक पर रहनेवाली रंगपताका और रतिसेना नाम की गणिकाएँ मुरगे लड़वाने में बहुत रस लेती थीं । श्रावस्ती के राजा एणिकपुत्र के महाद्वारपाल गंगरक्षित पर रंगपताका की दासी ने एक
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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