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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा जिनके पुत्र का नाम पर्वतक था और नारद नाम का ब्राह्मण उनका शिष्य था । पर्वतक द्वारा आयोजित हिंसायज्ञ में सम्मिलित होने के कारण उपरिचर वसु को नरकगामी होना पड़ा था । ४७८ वत्स-जनपद की राजधानी कौशाम्बी थी । हरिवंश -कुल की उत्पत्ति, जिसे 'स्थानांग' (१०.१६०) में दस आश्चर्यों में एक माना गया है, यहीं हुई थी। सम्मुख यहाँ का राजा था। कहा जाता है, उसने वीरक नाम के बुनकर की पत्नी वनमाला का अपहरण कर लिया था। एक दिन बिजली गिरने से सम्मुख और वनमाला की मृत्यु हो गई। अगले जन्म में ये दोनों हरिवर्ष में मिथुन के रूप में उत्पन्न हुए। हरिवर्षवासी मिथुन में पुरुष हरि नाम का राजा हुआ और स्त्री हरिणी नाम की रानी हुई। उनका ही पुत्र पृथिवीपति हुआ । पृथिवीपति से ही वंश परंपरागत रूप में क्रमशः महागिरि हिमगिरि वसुगिरि नरगिरि और इन्द्रगिरि का जन्म हुआ । हरि के वंशज इन्द्रगिरि के कुल में इसी क्रम से अनेक राजा हुए। इन्द्रगिरि का पुत्र दक्ष हुआ, जो प्रजापति कहलाता था । उसकी पत्नी इलादेवी से इल नामक पुत्र हुआ। पुत्र के किसी कारण से इलादेवी दक्ष प्रजापति से रूठ गई। अतएव, वह सपरिवार पुत्र इल को लेकर अन्यत्र चली गई । इला ने ताम्रलिप्ति में इलावर्द्धन नाम का नगर बसाया और इसके पुत्र इल ने माहेश्वरी नगरी बसाई । इल का पुत्र पुलिन नाम का हुआ। कुण्टी (कुबड़ी) मृगी को बाघ के सम्मुख खड़ी देखकर पुलिन ने सोचा कि यह इस क्षेत्र का प्रभाव है। बस उसने वहाँ 'कुण्डिनी' नगरी बसा दी। उसी वंश में इन्द्रपुर का अधिपति राजा वरिम हुआ। उसने संयती तथा वनवासी नाम से दो नगरियाँ बसाईं । उसी के वंश में कोल्लकिर नगर में कुणिम नाम का राजा हुआ, जिसका वंशज महेन्द्रदत्त हुआ। महेन्द्रदत्त के पुत्र रिष्टनेमि और मत्स्य हुए । उनके आधिपत्य में गजपुर और भद्रिलपुर नगर थे । इन दोनों के सौ पुत्र हुए। इन्हीं के वंश में अयोधनु हुआ, जिसने 'शोध्य ' नगर की स्थापना की । अयोधनु के वंश में मूल राजा हुआ, जिसका पुरोहित वन्ध्य हुआ। मूल के वंश में विशाल हुआ, जिसने मिथिला नगरी बसाई । विशाल के कुल में हरिषेण हुआ और उसके कुल में नभःसेन । नभःसेन के कुल में शंख हुआ, जिसके कुल में भद्र और भद्र के कुल में अभिचन्द्र हुआ । उसके बाद उपरिचर (धरती के ऊपर-ऊपर चलनेवाला) राजा वसु हुआ, जिसका चेदिदेश की शुक्तिमती नगरी में, यज्ञ में पशुवध के विषय में 'अजैर्यष्टव्यम्' प्रयोग के 'अज' शब्द का 'बीज' के बजाय 'बकरा' अर्थ लगाने की बात पर पर्वतक और नारद के बीच विवाद हुआ और पशुहिंसा के निमित्त मिथ्या साक्ष्य उपस्थित करने के कारण वह देवों द्वारा निपातित होकर नरकगामी हुआ। राजा वसु के छह पुत्र राज्याभिषिक्त हुए। किन्तु अभिनिविष्ट देवों ने उनका विनाश कर दिया। शेष बचे हुए, सुवसु और पृथग्ध्वज भी नष्ट हो गये। सुवसु मथुरा में राज्य करता था। राजा पृथग्ध्वज के वंश में सुबाहु हुआ, उससे दीर्घबाहु और फिर उससे वज्रबाहु हुआ । वज्रबाहु के कुल में अर्द्धबाहु और उससे भानु हुआ । भानु के वंश में सुभानु और उससे यदु हुआ । १. संघदासगणी ने वैशाली की चर्चा नहीं की है। 'वाल्मीकिरामायण' (१.४.११-१२) तथा 'विष्णुपुराण' ( ४.१.४८-४९) के अनुसार इक्ष्वाकुवंशीय राजा विशाल ने विशालापुरी, अर्थात् वैशाली नगरी बसाई । बौद्ध साहित्य के अनुसार, इस नगरी को परिस्थितिवश कई बार विशाल करना पड़ा, इसलिए इसका नाम वैशाली हो गया। अनुमान है कि संघदासगणी के काल में वैशाली के बदले मिथिला नगरी ही लोक-प्रचलित थी, इसलिए उन्होंने राजा विशाल द्वारा मिथिला नगरी बसाने का उल्लेख किया है। —ले.
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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